भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों और कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
Answers
भारत के राष्ट्रपति, भारत के राज्य के औपचारिक प्रमुख और भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ हैं। राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से भारत के संसद (दोनों सदनों) और भारत के प्रत्येक राज्यों और क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जो स्वयं सभी सीधे निर्वाचित होते हैं।
Explanation:
Legislative Powers (वैधानिक शक्ति)
- वह संसद को बुलाता है या उसका प्रचार करता है और लोकसभा को भंग करता है।
- वह गतिरोध के मामले में लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक बुलाती है।
- वह हर आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत में भारतीय संसद को संबोधित करते हैं।
- वह स्पीकर, लोकसभा के उपाध्यक्ष और राज्यसभा के अध्यक्ष / उपाध्यक्ष को नियुक्त करता है जब सीटें खाली हो जाती हैं (लोकसभा और राज्यसभा के बीच ।अंतर जानने के लिए लिंक किए गए लेख की जांच करें।)
- वह राज्यसभा के 12 सदस्यों को नामित करता है।
- वह एंग्लो-इंडियन समुदाय से दो सदस्यों को लोकसभा में नामांकित कर सकता है।
- वह सांसदों की अयोग्यता के सवालों पर भारत के चुनाव आयोग को सलाह देता है।
- वह कुछ प्रकार के बिलों को पेश करने की अनुमति देता है / इसकी अनुमति देता है (भारतीय संसद में बिल कैसे पारित होता है, यह जानने के लिए लिंक किए गए लेख को देखें)।
- वह अध्यादेशों का प्रचार करता है।
- वह संसद के समक्ष निम्नलिखित रिपोर्ट देता है:
- नियंत्रक और महालेखा परीक्षक।
- संघ लोक सेवा आयोग।
- वित्त आयोग इत्यादि।
Executive Powers (कार्यपालिका शक्ति)
- भारत सरकार को हर कार्यकारी कार्रवाई के लिए उनके नाम पर कार्रवाई करनी है
- वह केंद्र सरकार के व्यापार के लेन-देन को आसान बनाने के लिए नियम बना सकता है / नहीं कर सकता है
- वह भारत के अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति करता है और अपना पारिश्रमिक निर्धारित करता है।
- वह निम्नलिखित लोगों को नियुक्त करता है:
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक। (CAG)
- मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त।
- संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य।
- राज्य के राज्यपाल।
- भारतीय वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्य
- वह संघ सरकार से प्रशासनिक जानकारी मांगता है।
- उन्हें प्रधान मंत्री को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, मंत्रिपरिषद के विचार के लिए, जिस पर किसी मंत्री द्वारा निर्णय लिया गया हो, लेकिन जिसे परिषद द्वारा नहीं माना गया है।
- वह राष्ट्रीय आयोगों की नियुक्ति करता है:
- अनुसूचित जाति (जुड़े लेख में अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के बारे में पढ़ें।)।
- अनुसूचित जनजातियों के बारे में (राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से जुड़े लेख में पढ़ें)।
- अन्य पिछड़ा वर्ग (संबंधित लेख में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के बारे में पढ़ें।)
Judicial Power (न्यायिक शक्ति)
- मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति उस पर है
- वह सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेता है, हालांकि, सलाह उन पर बाध्यकारी नहीं है
- उनके पास क्षमा शक्ति है: अनुच्छेद 72 के तहत, उन्हें यूनियन लॉ के खिलाफ अपराध के लिए माफी देने, एक मार्शल कोर्ट द्वारा सजा या मौत की सजा देने के लिए शक्ति प्रदान की गई है।
Financial Power (राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ)
- धन विधेयक को पेश करने के लिए, उसकी पूर्व अनुशंसा आवश्यक है।
- वह संसद के समक्ष केंद्रीय बजट रखे जाने का कारण बनता है।
- अनुदान की मांग करने के लिए, उनकी सिफारिश एक पूर्व-आवश्यकता है।
- भारत की आकस्मिकता निधि उनके नियंत्रण में है।
- वह हर पांच साल में वित्त आयोग का गठन करता है।
Diplomatic Power (राष्ट्रपति की राजनयिक शक्तियाँ)
- अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते जिन्हें संसद द्वारा अनुमोदित किया जाता है, उनके नाम पर बातचीत और निष्कर्ष निकाला जाता है।
- वह अंतरराष्ट्रीय मंचों और मामलों में भारत के प्रतिनिधि हैं।
Military Power (राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियाँ)
वह भारत के रक्षा बलों के कमांडर हैं। वह नियुक्त करता है:
- सेना का प्रमुख।
- नौसेना के प्रमुख।
- वायु सेना के प्रमुख।
Emergency Power (राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ)
वह भारतीय संविधान में दी गई तीन प्रकार की आपात स्थितियों से संबंधित है:
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 और 365)
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
Ordinance Power (अध्यादेश बनाना राष्ट्रपति की शक्ति)
- अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति की शक्ति बनाने वाले अध्यादेश से संबंधित है। राष्ट्रपति के पास कई विधायी शक्तियां हैं और यह शक्ति उनमें से एक है। राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर अध्यादेश लागू करता है। राष्ट्रपति के अध्यादेश बनाने की शक्ति पर अधिक पढ़ने के लिए, लिंक किए गए लेख की जांच करें।
Veto Power (राष्ट्रपति की वीटो पावर)
- जब संसद में एक विधेयक पेश किया जाता है, तो संसद विधेयक को पारित कर सकती है और विधेयक के अधिनियम बनने से पहले, इसे भारतीय राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करना होगा। यह भारत के राष्ट्रपति पर है कि वे बिल को अस्वीकार करें, बिल वापस करें या बिल पर अपनी सहमति वापस लें। विधेयक पर राष्ट्रपति की पसंद को उसकी वीटो शक्ति कहा जाता है। भारत के राष्ट्रपति की वीटो पावर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 द्वारा निर्देशित है। वीटो पावर को पढ़ना जारी रखने के लिए, लिंक किए गए लेख की जांच करें।
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describe briefly the powers of the president of india? - Brainly.in
brainly.in/question/1154697
Answer:
राष्ट्र्पत का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है. एक ही व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है, इस पर कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है. वह पाँच वर्ष से पूर्व स्वयं त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देकर पद से हट सकता है.
Explanation:
राष्ट्रपति की शक्तियाँ
कार्यपालिका शक्तियाँ :यद्यपि राष्ट्रपति प्रशासन का वास्तविक प्रधान नहीं है फिर भी शासन के सभी कार्य उसी के नाम से होते हैं तथा संघ के सभी कार्यपालिका अधिकारी उसके अधीन रहते हैं. राष्ट्रपति कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद्, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री है, की सलाह पर करेगा. 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया गया है.
राष्ट्रपति को इन्हें नियुक्त करने की शक्ति है– प्रधानमंत्री /मंत्रिपरिषद् के अन्य मंत्री /भारत का महान्यायवादी /नियंत्रक महालेखा परीक्षक /उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीश / राज्यों के राज्यपाल / उच्च न्यायालय के न्यायाधीश / संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य / वित्त आयोग के अध्यक्ष / मुख्य तथा अन्य आयुक्त इत्यादि
राष्ट्रपति को इन्हें पद से हटाने का भी अधिकार है– मंत्रिपरिषद् के मंत्री / राज्य का राज्यपाल / उच्चतम न्यायालय की रिपोर्ट पर लोक सेवा आयोग के (संघ या राज्य) अध्यक्ष या सदस्य / संसद की रिपोर्ट पर उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या निर्वाचन आयुक्त
विधायी शक्तियाँ : राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है. संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं. राष्ट्रपति संसद के सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोक सभा का विघटन करने की शक्ति रखता है. राष्ट्रपति लोक सभा के लिए प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में एक साथ संसद के दोनों सदनों में प्रारम्भिक अभिभाषण करता है.
न्यायिक शक्तियाँ (JUDICIAL POWERS)
राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को तथा अपराधी को मृत्यु दंड दिए जाने की स्थिति में क्षमा दान दे सकता है. दंड को कम कर सकता है, दंडादेश की प्रकृति को बदल सकता है. दंड को निलंबित करने का भी राष्ट्रपति को अधिकार है.
सैन्य शक्तियाँ: राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है. वह तीनों सेनाओं के सेना अध्यक्षों की नियुक्ति करता है. उसे युद्ध या शांति की घोषणा करने, तथा रक्षा बलों को नियोजित करने का अधिकार है. लेकिन उसके ये अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं.
राजनयिक शक्तियाँ : राष्ट्रपति संसद की विधि के अधीन राजनयिकों की विदेशों में नियुक्ति करता है. बाहर के राजनयिकों के परिचय-पत्र ग्रहण करता है. संसद की विधि के अधीन राष्ट्रपति को विदेशों से मंत्रियों की सलाह के अनुसार करार और संधि करने का अधिकार है.
परामर्श शक्तियाँ : राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है, लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है.
आपातकालीन शक्तियाँ: राष्ट्रपति तीन परिस्थतियों में आपात स्थिति लागू कर सकता है –
युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से यदि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में हो. 44वें संशोधन द्वारा आन्तरिक अशांति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़े गए. अनुच्छेद 20 तथा 21 में दिए गए मौलिक अधिकार आपातकाल में थी स्थगित नहीं किये जायेंगे. भारत में वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण, 1965 तथा 1971 के पाकिस्तानी आक्रमण के समय और वर्ष 1975 में आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल की घोषणा की गई थी.
किसी राज्य पर शासन संविधान के अनुरूप न चलने पर या संविधानिक तंत्र असफल हो जाने पर.
जब भारत या उसके किसी भाग में वित्तीय स्थायित्व संकट में हो (अनुच्छेद 360). 1 तथा 3 परिस्थिति में मंत्रिमंडल की सिफारिश पर और परिस्थिति -2 में राज्यपाल के प्रतिवेदन पर आपातकालीन घोषणा की जाती है.
विशेषाधिकार : संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और मंत्रिपरिषद् की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है. प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएँ उसे दे. राष्ट्रपति प्रायः प्रधानमंत्री को पत्र लिखता है और देश की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करता है. इसके अतिरिक्त, कम से कम तीन अन्य अवसरों पर वह अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करता है
i) राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह को लौटा सकता है और उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है. ऐसा करने में वह अपने विवेक का प्रयोग करता है. जब राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि सलाह में कुछ गलती है या कानूनी रूप से कुछ कमियाँ हैं या फैसला देश के हित में नहीं है, तो वह मंत्रिपरिषद् से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है. यद्यपि मंत्रिपरिषद् पुनर्विचार के बाद भी उसे वही सलाह दुबारा दे सकती है और तब राष्ट्रपति उसे मानने के लिए बाध्य भी होगा, तथापि राष्ट्रपति के द्वारा पुनर्विचार का आग्रह अपने आप में काफी मायने रखा है. अतः यह एक तरीका है जिसमें राष्ट्रपति अपने विवेक के आधार पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है.