भारत का स्वर्णिम अतीत पर निबंध
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भारत का इक अतीत तो है जो बहुत पुराना है वेदों के समय का है वेद कालीन है और वह दसवीं शताब्दी तक चलता है वेदों के समय से ले कर दसवीं शताब्दी तक का, परम पूजनीय स्वामी जी ने उसके बारे में आपसे जरूर बात की होगी. मैं आपको भारत के उस अतीत के बारे में बात करूंगा जो अभी हाल में हमारे सामने रहा १५० – २०० साल पहले तक अठारहवीं शताब्दी तक सत्रहवीं शताब्दी तक सोलहवीं शताब्दी तक, पंद्रहवीं शताब्दी तक माने आज से लगभग १०० – १५० साल पहले से शुरू कर के और पिछले हजार साल का जो भारत का इतिहास है कैसा है वह उसके बारे में थोड़ी सी बात करूंगा. और इक जानकारी आपको स्पष्टता के लिए देना चाहता हूँ, वह ये कि भारत के इतिहास पर भारत के अतीत पर दुनिया भर के २०० से ज्यादा विद्वान इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत ज्यादा शोध किया बहुत शोध किया, और दुनिया भर के ये २०० से ज्यादा विद्वान शोधकर्ता इतिहास के विशेषज्ञ भारत के बारे में क्या कहते रहे है, इनमें से कुछ विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूंगा. सभी विशेषज्ञों का रखना बड़ा मुश्किल है क्योंकि २०० विशेषज्ञों का काफी समय जाएगा लेकिन उसमें से जो प्रमुख है मुख्य है वैसे ८ – १० विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूंगा, और ये सारे विशेषज्ञ भारत से बहार के है कुछ अंग्रेज है, कुछ सकोटीश है, कुछ अमरीकन है कुछ फ्रेंच है, कुछ जर्मन है. ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा है, लिखा है और उसके जो प्रमाण दिए है उन पर बात मुझे कहनी है सबसे पहले है इक अंग्रेज की जानकारी मैं आपको दूं उसका नाम है थामस बेव मैकाले, टी बी मैकाले जिसको हम कहते है. ये भारत में आया करीब १७ वर्ष देश में रहा सबसे ज्यादा जो अंग्रेज अधिकारी इस भारत में रहें उनमें से इसकी गिनती होती है मैकाले की और जब वह भारत में रहा तो भारत का काफी उसने प्रवास किया, यात्रा की, उत्तर भारत में गया, दक्षिण भारत में गया, पूर्वी भारत में गया पश्चिमी भारत में गया और अपने सत्रह साल के भारत के प्रवास के बाद वह इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट में हाउस ऑफ कॉमन्स उसने इक लम्बा भाषण दिया उस भाषण का थोड़ा सा अंश परम पूजनीय स्वामी जी द्वारा लिखित जो पुस्तक है“शंखनाद” उसमें आप पढ़ सकते है, और वह अंश है और ये कह रहा है ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कॉमन्स में “आई हेव ट्रावेल्ड लेंथ एंड ब्रेथ ऑफ दिस कंट्री इंडिया बट आई हेव नेवर सीन ए बेगर एंड थीफ इन दिस कंट्री इंडिया”. इसका मतलब क्या है ? वह ये कह रहा है की मैं सम्पूर्ण भारत में प्रवास कर चूका हु, उत्तर से दक्षिण,पूरब से पश्चिम में मैं जा चूका हु, लेकिन मैंने कभी भी अपनी आँखों से भारत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा – जो चोर हो, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा – जो बेरोजगार हो, एक भी व्यक्ति मैंने ऐसा नहीं देखा – जो गरीब हो, ये बात आप ध्यान दीजिएगा, वह २ फरवरी सन १८३५ को कह रहा है माने आज से अगर ये हम जोड़ेंगे तो लगभग १६०,१७० साल पहले वह ये बोल रहा है, कि एक भी व्यक्ति भारत में गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है, चोर नहीं है. वह यह कह रहा है इसका माने की भारत में गरीबी नहीं थी बेरोजगारी नहीं थी और चोरी कोई क्यों करेगा जब कोई गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है,फिर आगे के वाक्य में वह और बड़ी बात कह रहा है वह कह रहा है “आई हवे सीन सच वेल्थ इन दिस कंट्री इंडिया देट वी कैन नोट इमेजिन टू कोंक्वेर्ड टू दिस कंट्री इंडिया. वह कहता है की भारत में इतना धन और इतनी संपत्ति और इतना वैभव मैंने देखा है कि इन भारतवासियों को गुलाम बनाना बहुत मुश्किल काम है. ये आसन नहीं है. क्यों ? वह खुद कहता है कि जो लोग बहुत पैसे वाले होते है समृद्ध शाली होते है बहुत अमीर होते है वह लोग जल्दी किसी के गुलाम नहीं होते. इसलिए भारतवासी हमारे गुलाम हो जाएँगे ये मुझे बहुत मुश्किल लगता है , और फिर वह अगले भाषण में वह बहुत लम्बी बात कहता है भारत की शिक्षा, भारत की संस्कृति भारत की सभ्यता के बारे में. मैं उस बात को आगे नहीं ले जाना चाहता, फिर प्रमाण के रूप में २ फरवरी १८३५ को दिए गए उसके भाषण के ये २ – ३ वाक्य है, जो हमारे ध्यान में आने चाहिए कि भारत में एक अंग्रेज घूम रहा है और कह रहा है कही कोई गरीब नहीं है कोई बेरोजगार नहीं है किसी को चोरी करने की भारत में जरूरत नहीं है इसका माने भारत कुछ काफी समृद्ध शाली देश है फिर इसी भाषण के अंत में मैकाले एक वाक्य और कहता है उसको मैं सीधे सुनाता हु, वह कहता है कि भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया तो मैंने देखा कि वहां सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता है जैसे की चने का या गेहूँ का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है माने सामान्य घरों से ले कर विशिष्ट घरों तक सबके पास सोने के सिक्के इतनी अधिक मात्रा में होते है कि वह ढेर लगा कर उन सिक्को को रखते है. और वह कह रहा है कि भारतवासी कभी इन सिक्कों को गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नहीं होती है इसलिए वह तराजू में तोल कर रखते है. किसी के घर में १०० किलो सोना होता है किसी के घर में २०० किलो होता है किसी के घर में ५०० किलो होता है इस तरह से सोने का हमारे भारत के घरों में भंडार भरा हुआ है, ये एक प्रमाण मैकाले का भाषण ब्रिटेन की संसद में २ फरवरी १८३५ को. इसके बाद इससे भी बड़ा एक दूसरा प्रमाण मैं आपको देता हु, एक अंग्रेज इतिहासकार हुआ उसका नाम है विलियम डिग्बी, ये बहुत बड़ा इतिहासकार माना जाता है इंग्लैंड में, अंग्रेज लोग इसकी बहुत इज्जत करते है, इसका बहुत सन्मान करते है, और ना सिर्फ अंग्रेज इसका सन्मान करते है इज्जत करते है बल्कि यूरोप के सभी देशों में विलियम डिग्बी का बहुत सन्मान है बहुत इज्जत है, अमरीका में भी इसकी बहुत सन्मान और बहुत इज्जत है कारण क्या है, विलियम डिग्बी के बारे में कहा जाता है की वह बिना प्रमाण के कोई बात नहीं कहता और बिना दस्तावेज के बिना सबूत के वह कुछ लिखता नहीं है. इसलिए इसकी इज्जत पूरे यूरोप और अमरीका में है.