Social Sciences, asked by anana7712, 1 year ago

भारत की शिक्षा प्रणाली में क्या बड़ी कमियाँ हैं और उन्हें दूर करने के लिए आप इसमें क्या परिवर्तन करना चाहेंगे?

Answers

Answered by SanyaBhasin
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सबसे बड़ा परिवर्तन हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में चाहिए “ परीक्षा पद्धति” में।

हमारी परीक्षा पद्धति ऐसे हैं, जिसमें छात्रों को क्या समझ में आया , न आया इसका कोई जांच नहीं होस्कता। लेकिन वे कितना याद किए हैं वो जांच होता है।

और फिर हमारे लिए बच्चा “ खाता में क्या लिखता है वहीं ज़रूरी है।” लेकिन प्रैक्टिकल में सबको ऐसे ही अंक आजाते है। आप १२वी की बच्चों का प्रक्टिकल विभाग देखिएगा। वहीं घिसी पिटी कुछ परीक्षण आज तक चल रही है। अरे भाई आज तक पदार्थ विज्ञान में खाली प्रिज्म की परीक्षा और प्रतिफलन का कोण नाप कर बच्चे क्या करेंगे? उससे आगे तो बढ़िए। रसायन विज्ञान वहीं रंगों पर लटका हुआ है। गणित, वाणिज्य और कला आदि में प्रैक्टिकल क्या होता है यह आज भी हमें ढंग से नहीं पता। परिवेश, सोशियोलॉजी आदि में प्रजेक्ट के नाम पर बच्चे दुकान से खरीद कर ५०-१०० पन्नों का डीटीपी मारा हुआ स्पायराल दस्तविज पकड़ा देते हैं।

स्नातक में भी वही हाल। क्यों की पढ़ना, ज्ञान आहरण करना किसको है भाई। सब औकात तो परीक्षा फल में ही दिखेगा।

९०% मार्क आया बोर्ड में. कंप्यूटर में तो १०० का १०० आया।

तो फिर बताओ C ++ को C से क्यों बेहतर माना जाता है?

उम्ममम.. पर यह तो सिलेबस में नहीं था। आप कोडिंग पूछिए बता दूंगा।

अच्छा तो कोडिंग का मकसद क्या है?

मकसद? हमें तो बस कोडिंग सिखाया गया। मकसद कुछ बताया नहीं गया।

अब बताइए अगर बचोंको हम तोता बनाएंगे तो वो खुद से मैना बन पाएंगे क्या? ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों की हमारी परीक्षा पद्धति वैसे ही है। चार पांच साल का पेपर उठाइएगा तो आपको समझ में आजाएगा की एक स्थिर शिली है और कुछ खास विषय है जिनमें से बार बार प्रश्न पूछे जाते है। और हमारे प्यारे कोचिंग वाले बच्चों को बार बार उन्ही विषयों का रट्टा लगाकर भेजते है परीक्षा देने। बच्चा स्कूल/ कॉलेज से आकर इसीलिए कोचिंग भागता है। माबाप खुस अच्छे अंक से। बच्चा समझता है कि जितने अंक उतनी वाह वाही और उतना ज्ञान। कोचिंग वाले खुस की अगले साल केलिए इसका तस्वीर मिलगया की देखो हम बेहतर रटाने वाले हैं।

यह सब बदल सकता अगर हमारी परीक्षा पद्धति बदलकर वैसे बनता, जिसमें बचा क्या समझा है उसकी परीक्षण होती। तब सब कोई समझ कर पढ़ते। क्यों की ज्ञान और विचार वही है। लेकिन उसको हम कैसे समझ रहे है, उसमे फर्क पड़ता है।

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