भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार मानकर हुआ I लेकिन,1962-1971 की अवधी यानी महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा I क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति के असफलता है अथवा, आप इसे अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे ? आप के मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए I
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"बडे कठिन और विकट हालात में चुनौतीपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से गुजरते हुए भारत को स्वतंत्रता मिली थी। एक देश के रूप में भारत विश्वयुद्ध की रणभूमि में उपजा था | ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में बदलाव कर के अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का उद्देश्य सामने रखा। भारत ने अन्य सभी देशों की संप्रभुता एवम अधिकार का सम्मान करने और शांति कायम करके अपना समर्थन दिया | इस तरह भारत की विदेश नीति का जन्म शांति और सहयोग के सिद्धांतों के आधार पर हुआ था। लेकिन १९६२-७२ के दशक में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा था।
चीन ने सन् १९६२ में भारत पर हमला किया और अरुणाचल प्रदेश के कुछ मुख्य हिस्सो पर कब्जा कर लिया जो भारत की विदेश-नीति की असफलता का प्रतिबिंब था।
चीन की कूटनीतियों से अनजान भारत शांति और सहयोग की नीति की राह पर चलता रहा | और चीन ने १९५४ के पंचशील के समझौते का उल्लंघन करते हुए भारत पर हमला किया। उसके बाद भी चीन ने १९६५ तथा १९७१ में भारत पर आक्रमण किया था ।
सन् १९७१ में पश्चिमी तथा पूर्वी पाकिस्तान के बीच जो युद्ध हुआ उस में भारत का मध्यक्षेप हुआ। और पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से विभाजित हो गया और बांग्लादेश नाम के एक स्वतंत्र राज्य बना। "
Answer:
भारतका प्रधानमंत्री कौन है