भारत की विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता को अपनाने के कारण बताइए।
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भारतीय विदेश नीति के मौलिक सिद्धांत भली-भांति परिभाषित हैं तथा ये आज भी लगभग वहीं हैं जिनका भारत की अंतरिम सरकार के प्रधान के रूप में 1946 में पंडित नेहरू ने वर्णन किया था। इनमें निरंतरता इसलिए बनी रही क्योंकि कुछ क्रांतिकारी घटनाओं के होते हुए भी वातावरण की मुख्य मांगे, अर्थात् विश्व शांति तथा सुरक्षा की रक्षा या उपनिवेशवाद तथा नस्ली भेदभाव की समाप्ति, आपसी असहयोग तथा मित्रता के बंधनों को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता शक्ति राजनीति, शीत युद्ध से अलग रहने की आवश्यकता तथा संयुक्त राष्ट्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता आज भी उतनी ही वैध मानी जाती है जितनी कि 1946 में थी।
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भारतीय विदेश नीति के मौलिक सिद्धांत भली-भांति परिभाषित हैं तथा ये आज भी लगभग वहीं हैं जिनका भारत की अंतरिम सरकार के प्रधान के रूप में 1946 में पंडित नेहरू ने वर्णन किया था। इनमें निरंतरता इसलिए बनी रही क्योंकि कुछ क्रांतिकारी घटनाओं के होते हुए भी वातावरण की मुख्य मांगे, अर्थात् विश्व शांति तथा सुरक्षा की रक्षा या उपनिवेशवाद तथा नस्ली भेदभाव की समाप्ति, आपसी असहयोग तथा मित्रता के बंधनों को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता शक्ति राजनीति, शीत युद्ध से अलग रहने की आवश्यकता तथा संयुक्त राष्ट्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता आज भी उतनी ही वैध मानी जाती है जितनी कि 1946 में थी।
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