भारत में आर्थिक मंदी दुबारा कब आयेगी?
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भारत में मंदी कभी उसके आंतरिक आर्थिक कारणों से नही आई है और न ही भारत ने कभी घरेलू मंदी को झेला है। ब्रिटिश राज के पहले तो भारत की अर्थव्यवस्था इतनी उन्नत थी कि एक फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के भारत भ्रमण के दौरान उसने पश्चिम बंगाल के बारे में लिखा था-
“यह क्षेत्र मिश्र देश से कई अधिक सम्रद्ध है, यहाँ चावल, गेहू, सूती कपड़ा, शक्कर, माखन, प्रचूर मात्रा में होता है, अपने आंतरिक उपभोग के लिए यह पर्याप्त मात्रा में सब्जियों और मछलियों का उत्पादन होता है यह भेड़ बकरियो के बड़े बड़े झुंड भी विद्यमान है, ओर सिचाई के लिए गंगा नदी” ।
आर्थिक मंदी 2008 के अप्रत्यक्ष कारणों से भारत मे मंदी आयी थी। उस समय मे भारत की अर्थव्यस्था को उतना नुकसान नही झेलना पड़ा था जितना अन्य देशों के अर्थव्यवस्थाओ को झेलना पड़ा था, उस मंदी के दौर में भी भारत के व्यापारिक बैंक डिगे नहीं। मुख्य कारण था भारतीय जनता में बचत की प्रवृत्ति !
भारत के व्यापारिक बैंको की वर्तमान स्थिति पहले से काफी बुरी हो चुकी है, यह सब बैंको के बढ़ती “गैर निष्पादित आस्तियों” (NPA) के कारण हो रहा है। रिज़र्व बैंक एवम अंतरास्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दिए गए पूर्वानुमान के अनुसार भारत अगली तिमाही में 7.4% की वृद्धि दर से विकास करेगा। लेकिन गहन अध्ययन करे तो पाएंगे कि भारत वृद्धि तो कर रहा है लेकिन ये वृद्धि बेरोजगारी को साथ लेकर चलने वाली वृद्धि है। फ़ूड इन्फ्लेशन में भी वृद्धि देखने को मिली है।
इन सब कारणों के चलते ये संभावना जताई जा सकती है कि भारत आने वाले समय मे घरेलू मंदी झेल सकता है। हालांकि केंद्रीय बैंक द्वारा बैंको के लिए नए नियमो और गैर निष्पादित अस्तियो पर लगाम लगाने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे है।