Sociology, asked by manojkaur1979, 3 months ago

भारत में आदिवासियों के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक परिस्थिति का उपयुक्त उदाहरण के साथ चर्चा कीजिए​

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Answered by s7b1576simran2436
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Answer:

आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण और प्रवर्तन के लिए विधिक सेवाऐं योजना

अवस्था:

खुला

आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण और प्रवर्तन के लिए विधिक सेवाऐं योजना

पृष्ठभूमि

योजना का उद्देश्य

भेद्धयता समस्याएँ

भूमि संबंधी समस्याएँ

विधिक समस्याएँ

अन्य विधिक समस्याएँ

शिक्षा से संबंधित समस्याएँ

स्वास्थ्य समस्याएँ

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के ध्यान योग्य कदम

मुकदमेबाजी से संबंधित

अर्धविधिक स्वयंसेवक (पी.एल.वी.)

जानकारी

पृष्ठभूमि

हालाँकि 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 10,42,81,034 है, जो कि देश की जनसंख्या की 8.6 प्रतिशत है, भारत में जनजातीय समुदाय अत्यंत विविध् एवं विजातीय है। बोली जाने वाली भाषाओं, जनसंख्या का आकार, रहन-सहन के ढंग को लेकर इनमें बहुत प्रकार की विविधताएँ हैं। भारत में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों के रूप में अधिसूचित विशिष्ट समूहों की संख्या 705 है। उत्तर-पूर्वी राज्य अपनी स्वयं की विविधताओं के कारण सजातीय खंड नहीं हैं। वहां लगभग 220 जातीय समूह है तथा उतनी ही संख्या में भाषा एवं बोलियाँ हैं। यह समूह मोटे तौर पर तिब्बती-बर्मन, माँन-खमेर तथा भारतीय-यूरोपी नामक तीन मुख्य समूहों में वर्गीकृत किये जा सकते है।

जनजातीय समूहों में कुछ जनजातियाँ अपनी अत्यधिक दुर्बलता के कारणवश विशेष रूप से अति संवेदनशील जनजातीय समूह पी. वी. टी. जीद्ध पहले प्राचीन जनजातीय समूह के रूप में जाने जाने वालीद्ध की श्रेणी में रखी गई हैं। वर्तमान में पी.वी.टी.जी. में 75 जनजातीय समूह शामिल हैं जिनकी पहचान इस रूप में निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर की गयी है। 1)वन आश्रित आजीविका, 2) कृषि पूर्व जीवन स्तर, 3) स्थिर एवं घटती जनसंख्या, 4)निम्न साक्षरता दर तथा 5) जीविका आधरित अर्थ व्यवस्था। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इन 75 पी. वी. टी. जी. की कुल जनसंख्या का अधिकांश भाग छह राज्यों महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश एवं तमिलनाडू में रहता है। जनजातियों में पी.वी.टी.जीस. पर उनकी संवेदनशीलता के कारण मुख्य रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है।

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