भारत में हैदराबाद के विलीनीकरण पर लेख लिखिए।
Answers
उत्तर- हैदराबाद की स्थिति भी जूनागढ़ की तरह थी। वहाँ का नरेश मुसलमान था परन्तु जनता की । बहुसंख्या हिन्दुओं की थी। हैदराबाद का राज्य भी चारों ओर से भारतीय सीमाओं से घिरा था। यहाँ के निजाम को बेहद कीमती पत्थर, सोना, जवाहरात आदि इकट्ठा करने की सनक थी। वह अपने को स्वतंत्र संमझता था तथा । अपने राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व को कायम रखना चाहता था। वह राजाओं के दैवीय अधिकारों में विश्वास रखता था तथा प्रजातंत्र को दूषित प्रणाली समझता था। उसने अपने राज्य के शासन संम्बन्धी सम्पूर्ण अधिकार अपने पास केन्द्रित कर रखा था। निजाम के अधिकारी भी लालची तथा धूर्त थे। 15 अगस्त, सन् 1947 तक हैदराबाद के निजाम ने भारत सरकार के राज्य मंत्रालय को संघ में सम्मिलित होने या न होने के विषय में भ्रम पैदा किया। इसके बाद किसी-न-किसी बहाने बातचीत को लम्बा खचता रहा। सन् 1947 में लार्ड माउंटबेटन के दबाव के कारण नवम्बर, सन् 1947 में उसने भारत के साथ स्टेंडस्टील एग्रीमेन्ट’ पर तो हस्ताक्षर कर दिया परंतु संघ में सम्मिलित होने की बात को टालता रहा। इसी के साथ हैदराबाद के निजाम ने अपने राज्य के कट्टर साम्प्रदायिक मुसलमानों को भी प्रोत्साहित करना प्रारंभ किया। निजाम की शह पाकर कट्टर मुसलमानों ने हैदराबाद में निवास कर रहे बहुसंख्यक हिन्दुओं पर दबाव डालना, अत्याचार करना प्रारंभ किया ताकि वे हैदराबाद छोड़कर भारत के अन्य हिस्सों में चले जायें। हैदराबाद में हिन्दुओं के साथ अत्याचार बढ़ता गया। हैदराबाद रियासत से होकर गुजरने वाले रेलमार्गों एवं सड़कों को क्षतिग्रस्त किया जाने लगा। रेलयात्रियों एवं बस यात्रियों को लूटा जाने । लगा। इसी बीच मुस्लिम रजाकारों के नेता कासिम रिजवी ने घोषणा की कि वे सम्पूर्ण भारत को जीतकर दिल्ली के लालकिले पर निजाम का आसफजाही झण्डा फहरायेंगे। इससे स्थिति काफी नाजुक हो गई। सन् 1948 में लार्ड माउंटबेटन के वापस इंग्लैंड लौटने के साथ ही हिन्दुओं पर अत्याचार और बढ़े। इस सम्पूर्ण अवधि में भारत सरकार ने संयम से काम लिया। सरदार पटेल ने निजाम को समझाने-बुझाने का अथक प्रयास किया परन्तु निजाम ने सरदार पटेल की बातों पर ध्यान नहीं दिया। हैदराबाद के रजाकारों एवं कट्टर मुल्ला-मौलवियों ने साम्प्रदायिक संघर्ष करने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसकी भनक भारत सरकार को लगी। भारत सरकार ने हैदराबाद रियासत के विरुद्ध पुलिस कार्यवाही करने का निश्चय किया। सितम्बर, सन् 1948 में भारतीय सेना ने मेजर जनरल चौधरी के नेतृत्व में हैदराबाद में शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना के लिए कूच किया। पाँच दिन की सैनिक कार्यवाही के पश्चात् मुस्लिम रजाकारों के प्रतिरोध को कुचल दिया गया। 18 सितम्बर, सन् 1948 को मेजर जनरल चौधरी ने हैदराबाद रियासत के सैनिक गवर्नर का पद सँभाला और हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ में सम्मिलित किया। विवश होकर निजाम को नई व्यवस्था स्वीकार करनी पड़ी। भारतीय सरकार ने भी उनके प्रति सम्मानपूर्वक व्यवहार किया और उनकी प्रतिष्ठा को विशेष क्षति नहीं पहुँचाई।