Hindi, asked by kan49, 1 year ago

भारत में हजारों वर्ष पूर्व भी शल्य चिकित्सा कि जाती थी। यह समय और आज के समय में क्या अंतर है?​

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Answered by jaisika19
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अति प्राचीन काल से ही चिकित्सा के दो प्रमुख विभाग चले आ रहे हैं - कायचिकित्सा (Medicine) एवं शल्यचिकित्सा (Surgery)। इस आधार पर चिकित्सकों में भी दो परंपराएँ चलती हैं। एक कायचिकित्सक (Physician) और दूसरा शल्यचिकित्सक (Surgeon)। यद्यपि दोनों में ही औषधो पचार का न्यूनाधिक सामान्यरूपेण महत्व होने पर भी शल्यचिकित्सा में चिकित्सक के हस्तकौशल का महत्व प्रमुख होता है, जबकि कायचिकित्सा का प्रमुख स्वरूप औषधोपचार ही होता है।

यह समय और आज के समय में शल्य चिकित्सा का ढंग बदल गया है

शल्यचिकित्सा में संक्षोभ (surgical shock) भी एक विशिष्ट एवं महत्व का विषय है। संक्षोभ में त्वचा का रंग फीका पड़ जाता है तथा यह स्वेदक्लेद्य एवं स्पर्श में ठंढी मालूम होती है। प्राय: इसका मुख्य कारण हृदय का अपना वास्तविक दोष न होकर, बाह्य या आंतरिक रुधिरस्रावजन्य, रक्त-परिमाण-क्षीणता होती है, जिससे हृदय की रुधिरक्षेपणशक्ति सामान्य होने पर भी धमनियों का रुधिरसंभरण हीन कोटि का होता है। युद्ध में ग्राहतों में यह स्थिति प्राय: पाई जाती है। अब ऐसी स्थिति में रक्त की तत्कालपूर्ति रुधिराधान द्वारा, अथवा अन्य स्थानापन्न उपायों यथा सगदाबी लवणजल (normal saline) के शिरांत: प्रवेश आदि द्वारा की जाती है। अब बड़े स्थानों में समृद्ध रुधिर बैंक (blood bank) की व्यवस्था भी है, जहाँ से प्रत्येक रोगी के उपयुक्त रुधिर तत्काल प्राप्त हो सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य स्थानापन्न द्रव्य (substitules) भी सुलभ हैं।

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