भारत में जीडीपी वृद्धि और रोजगार वृद्धि के बीच के बेमेल संबंध है आप इस कथन को कैसे सही ठहराते हैं
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भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार वित्त वर्ष 2018-19 में पांच साल के निचले स्तर 6.8% पर पहुंच गई है. जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर घटकर 5.8% पर पहुंच गई, जो इसका पांच वर्षों का निचला स्तर है. विकास दर में इस गिरावट से भारत ने सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा चीन से गंवा दिया है. इस तिमाही में चीन की वृद्धि दर 6.4% रही. रेटिंग एजेंसी फिच ने अपने ताजा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में कहा है कि साल 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.6% रहेगी, साल 2020-21 में यह बढ़कर 7.1% पर पहुंच जाएगी.एक निश्चित अवधि में किसी देश में उत्पादित, आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतिम माल और सेवाओं का बाजार मूल्य ही सकल घरेलू उत्पाद है. यह एक आर्थिक संकेतक भी है जो देश के कुल उत्पादन को मापता है. देश के प्रत्येक व्यक्ति और उद्योगों द्वारा किया गया उत्पादन भी इसमें शामिल है. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी पर कैपिटा) सामान्यतया किसी देश के जीवन-स्तर और अर्थव्यवस्था की समृद्धि सूचक माना जाता है.जीडीपी को दो तरह से प्रस्तुत किया जाता है. वास्तव में उत्पादन की कीमतें महंगाई दर के साथ घटती-बढ़ती रहती हैं. जीडीपी को मापने के दो तरीके हैं. पहला पैमाना है कांस्टैंट प्राइस. इसके तहत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय किया जाता है. दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर इसमें शामिल होती है.भारत में कृषि, उद्योग और सेवा जीडीपी के तीन प्रमुख घटक हैं. इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने-घटने की औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है. देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी की बढ़ोतरी का मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है. इस आंकड़े में महंगाई दर को शामिल नहीं किया जाता. भारत में जीडीपी की गणना हर तिमाही की जाती है. जीडीपी के आंकड़े अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित हैं.जीडीपी का प्रतिनिधित्व आर्थिक उत्पादन और विकास करता है. देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित हर व्यक्ति पर यह प्रभाव डालता है. जीडीपी बढ़ने-घटने की स्थिति में शेयर बाजार पर असर पड़ता है. नकारात्मक जीडीपी (नेगेटिव जीडीपी) निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन जाती है. नकारात्मक जीडीपी वास्तव में देश के आर्थिक मंदी के दौर से गुजरने का संकेत है. ऐसे समय में जब देश में उत्पादन घटता है तो बेरोजगारी बढ़ जाती है. इस वजह से हर व्यक्ति का कामकाज, आमदनी, खर्च-निवेश करने की क्षमता और देश की अर्थव्यवस्था भी इससे प्रभावित होती है.