Political Science, asked by pplay2303, 10 months ago

भारत में जाति – व्यवस्था की उत्पत्ति का क्या कारण है?

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Answered by Anonymous
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किसी भी व्यक्ति, जो हिंदू धर्म के सांस्कृतिक या धार्मिक पहलुओं का पालन करता है, हिंदू कहा जा सकता है। ऐतिहासिक रूप से यह शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की भौगोलिक, सांस्कृतिक, पहचान के रूप में उपयोग किया गया है।

ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से पहले, दक्षिण एशिया में मुसलमानों के लिए शरिया (इस्लामी कानून) को फतवा-ए-आलमगिरी में संहिताबद्ध किया गया था| लेकिन गैर-मुसलमानों (जैसे हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी) के लिए कानून - इस्लामी शासन के 600 वर्षों के दौरान संहिताबद्ध नहीं किये थे|ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों के आगमन के साथ, मनुस्मृति ने दक्षिण एशिया में गैर-मुस्लिमों के लिए एक कानूनी प्रणाली का निर्माण करने में भूमिका निभाई| ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश क्राउन, अपने ब्रिटिश शेयरधारकों के लिए व्यापार के जरिए मुनाफा कमाना चाहते थे। वे न्यूनतम सैन्य हस्तक्षेप के साथ प्रभावी राजनीतिक नियंत्रण बनाए रखना चाहते थे।प्रशासन ने कम से कम प्रतिरोध का रास्ता अपनाया ब्रिटिश प्रशासन विभिन्न रियासतों में स्थानीय मध्यस्थों पर निर्भर थे। उनमें से ज्यादातर मुसलमान और कुछ हिंदू थे। ब्रिटिश शासन ने प्रतिरोध को कम करने के लिये इन के द्वारा सुझाये गये रास्तो का पालन करने की कोशिश की|भारत के मुसलमानों के लिए, अंग्रेजों ने कानूनी कोड के रूप में शरिया को स्वीकार किया|शरिया के नियम अल-दीरियाह और फतवा-ए आलमगिरी पर आधारित थे, जिन्हें औरंगजेब ने लिखवाया था। हिन्दू और अन्य गैर-मुस्लिम जैसे बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और आदिवासी लोगों के लिए, इस प्रकार की कानूनी जानकारी उपलब्ध नहीं थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा लगभग मृत और बेकार मनुस्मृति से हिंदू कानून के तत्वों की खोज की गई थी|।यह पहला धर्मशास्त्र था, जिसका अनुवाद 17 9 4 में हुआ था।ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने धर्मशास्र से ब्रिटिश कानून और धर्म के समान कानूनी व्यवस्था निकालने का प्रयास किया। ताकि वे इस कॉलोनी पर शासन कर सकें| आधुनिक विद्वानों के अनुसार, ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने गलती से मनुस्मृति को कानून के कोड के रूप में समझ लिया। वे यह मानने में नाकाम रहे कि मनुस्मृति नैतिकता और कानून पर टिप्पणी थी, नाकि एक कानूनी प्रणाली|19वीं शताब्दी के शुरुआती औपनिवेशिक अधिकारियों वे यह समझने में नाकाम रहे कि मनुस्मृति कई धर्मशास्त्र ग्रंथों में से एक था| जिन में कई विषयों पर परस्पर विरोधी विचार हैं| जिन में कई, भारत के इतिहास के दौरान शताब्दियों से प्रयोग में नहीं थे।

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