भारत में जल संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायित्व किन्हीं पांच कार्य को बताइए
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आधारभूत पंचतत्वों में से एक जल हमारे जीवन का आधार है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिये कवि रहीम ने कहा है- ‘‘रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून।’’ यदि जल न होता तो सृष्टि का निर्माण सम्भव न होता। यही कारण है कि यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका कोई मोल नहीं है जीवन के लिये जल की महत्ता को इसी से समझा जा सकता है कि बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई और अधिकांश प्राचीन नगर नदियों के तट पर ही बसे। जल की उपादेयता को ध्यान में रखकर यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम न सिर्फ जल का संरक्षण करें बल्कि उसे प्रदूषित होने से भी बचायें। इस सम्बन्ध में भारत के जल संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा रही है और जीवन के बनाये रखने वाले कारक के रूप में हमारे वेद-शास्त्र जल की महिमा से भरे पड़े हैं। ऋग्वेद में जल को अमृत के समतुल्य बताते हुए कहा गया है- अप्सु अन्तः अमतं अप्सु भेषनं।
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Warm regards:Miss Chikchiki