भारत में कानून बनाने की प्रक्रिया के मुख्य बातों को अपने शब्दों में लिखिए
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सबसे पहले सदन में विधेयक को रखा जाता है।
सरकार को जब ऐसा लगता है की किसी मुद्दे पर कानून बनाने की जरूरत है तो सरकार कैबिनेट में इस मुद्दे पर चर्चा करती है। चर्चा होने के बाद कानून के मसौदे की ड्राफ्टिंग की जाती है। ड्राफ्टिगं के बाद कानून कानून का ड्राफ्ट जिसे विधेयक कहा जाता हो, को सदन के पटल पर रखा जाता है। सदन में पक्ष और विपक्ष के सदस्य इस विधेयक पर चर्चा करते हैं। पक्ष विपक्ष के सदस्यों के बीच इस मुद्दे पर बहस के बाद कानून को पास करने की प्रक्रिया शूरू की जाती है। कभी-कभी विधेयक पर आम सहमती नहीं बन पाती है। इस हालत में सदन में मतदान की नौबत आती है। अगर सदन में विधेयक के पक्ष में अधिक वोट पड़ते हैं तो विधेयक को पास माना जाता है। अगर विधेयक किसी गतिरोध के कारण या कम समर्थन के कारण पास नहीं हो पाता है तो कानून नहीं बन पाता है।
अधिकतर कानून लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदन से पास होने के बाद ही बनती है।
सदन से पास हो जाने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास उनके हस्ताक्षर के लिये भेजा जाता है। राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है कि वो अधिकतम दो बार विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधायिका को भेज सकता है। जब राष्ट्रपति के पास से विधेयक पर हस्ताक्षर हो जाता है तो यह कानून बन जाता है।
राज्य स्तर पर कानून कैसे बनती है?
राज्य स्तर पर कानून विधानसभा से बनाया जाता है। राज्यों के विधानसभा में पहले विधेयक को पारित किया जाता है। विधानसभा से विधेयक के पारित या पास हो जाने के बाद विधेयक को राज्यपाल के अनुमोदन के लिये भेजा जाता है। राज्य में विधेयक के उपर राज्यपाल का हस्ताक्षर होता है। राज्यपाल के पास भी यह अधिकार होता है कि वो विधेयक पर फिर से विचार करने के लिये अधिकतम दो बार वापस सदन को भेज सकता है। एक बार राज्यपाल के हस्ताक्षर हो जाने के बाद कानून अस्तित्व में आ जाती है।
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भारत में कानून बनाने का कार्य देश की संसद करती है। पहले जनता के बीच किसी कानून को बनाने के लिए चर्चा एवं बहस होती है। फिर सरकार द्वारा सदन में कानून के सम्बन्ध में विधेयक पेश किया जाता है। इस पर सदन में चर्चा बहस होती है। फिर या तो विधेयक पारित किया जाता है या रद्द कर दिया जाता है। एक सदन से पारित विधेयक को दूसरे सदन में भेजा जाता है। दूसरे सदन में चर्चा/बहस के बाद आवश्यक संशोधन के बाद उसे पारित कर दिया जाता है। फिर विधेयक को राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। फिर सहमति के बाद विधेयक कानून बन जाता है।