Economy, asked by ludreshwar, 9 months ago

भारत में करेन्सी नोटों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?​

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Answered by poonamkumarisk143
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Explanation:

भारत की राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए 'रु' और अंग्रेज़ी में Rs. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे है और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं।

भारतीय मुद्रा का निर्माण

प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि प्राचीन भारत में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।

मुद्रा के मामले में आपका मार्गदर्शक

आम आदमी के लिए मुद्रा का सामान्य अर्थ केवल करेंसी और सिक्के है । इसका यह कारण है कि भारत में, भुगतान प्रणाली जिसमें क्रेडिट कार्ड और स्वचालित (इलेक्ट्रानिक) नकदी शामिल है, आज भी, विशेष रुप से, खुदरा लेनदेनों के लिए मुख्यतः करेंसी और सिक्कों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। यहाँ भारतीय मुद्रा के संबंध में बारंबार पूछे जानेवाले कतिपय प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया गया है।

मुद्रा से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें

I) सिक्के

वर्तमान में भारत में, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये के मूल्यवर्गों में सिक्के जारी किये जा रहे हैं । 50 पैसे तक के सिक्के "छोटे सिक्के" और 1 रुपये तथा उसके ऊपर के सिक्कों को "रुपये सिक्के" कहते है। 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के 30 जून 2011 से संचलन से वापिस लिये गये हैं, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।

II) करेंसी

वर्तमान में, भारत में `.10, `. 20, `.50, `.100, `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं । क्योंकि ये भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये जाते हैं, इसलिए इन्हें "बैंकनोट" कहा जाता है । `.1, `.2 और `.5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी संचलन में पाये जा सकते हैं और ये नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे ।

हमारे देश की करेंसी को क्या कहते हैं ?

भारतीय करेंसी को भारतीय रुपया (INR) तथा सिक्कों को "पैसे" कहा जाता है। एक रुपया 100 पैसे का होता है । भारतीय रुपये का प्रतीक है। यह डिजाईन देवनागरी अक्षर "र"(ra) और लैटिन बड़ा अक्षर "R" के सदृश है जिसमें ऊपर दोहरी आड़ी रेखा है।

क्या बैंकनोट और सिक्के केवल इन्हीं मूल्यवर्गों में जारी किये जा सकते हैं ?

यह जरूरी नहीं है। भारतीय रिज़र्व बैंक केंद्र सरकार की सिफारिश पर पाँच हजार तथा दस हजार अथवा किसी अन्य मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी कर सकता है । तथापि, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, दस हजार रुपये से अधिक उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोट नहीं हो सकते हैं। सिक्काकरण(क्वायनेज) अधिनियम, 2011 के अनुसार, `.1000 तक के मूल्यवर्ग के सिक्कें जारी किये जा सकते हैं ।

क)उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण

मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, जनवरी 1946 में उस समय संचलन में मौजुद `.1000 और `.10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। वर्ष 1954 में `.1000, `.5000 और `.10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया और जनवरी 1978 में इन बैंकनोटों (`.1000, `.5000 और `.10000) को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया।

विधि मान्य मुद्रा किसे कहते हैं ?

सिक्काकरण(क्वायनेज) अधिनियम, 2011 की धारा 6 में प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत जारी सिक्के भुगतान के लिए वैध मुद्रा होंगे बशर्ते कि सिक्के को विरूपित न किया गया हो और उनका वजन इस तरह से कम न हुआ हो जो प्रत्येक के मामले में निर्धारित वजन से कम हो। (क)किसी भी मूल्यवर्ग के सिक्के जो एक रुपये से कम न हो किसी भी राशि के लिए (ख) आधा रुपया सिक्का, किसी भी राशि के लिए किंतु अधिक से अधिक दस रुपये तक, वैध मुद्रा होंगे ।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी प्रत्येक बैंकनोट (`.2, `.5, `.10, `.20, `.50, `.100, `.500 और `.1000) भुगतान के लिए अथवा उस पर अंकित मूल्य के लिए पूरे भारत में कहीं भी विधि मान्य मुद्रा होगी और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 की उप-धारा(2) में निहित प्रावधानों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा प्रत्याभूत होगी।

Answered by gowrinanda
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Explanation:

रुपए शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द रुपिया से हुई है जिसका अर्थ है सही आकार एवं मुहर लगा हुआ मुद्रित सिक्का। इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द रुपया से भी हुई है जिसका अर्थ चांदी होता है। भारत में रुपये के संदर्भ में संघर्ष, खोज और संपत्ति का बहुत लंबा इतिहास रहा है, जो प्राचीन भारत के 6ठी सदी ईसा पूर्व से चला आ रहा है। पेपर करेंसी कानून 1861 ने सरकार को ब्रिटिश भारत के विशाल क्षेत्र में नोट जारी करने का एकाधिकार दिया था ।

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