Hindi, asked by sumitrewar58, 10 hours ago

भारत में खेलों के समक्ष स चुनौतिया niband​

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Answered by kumkumpari307
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पिछले कुछ वर्षो में आयोजित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के परिणामों पर नजर डालने पर हमें ज्ञात होता है कि इनमें भारत का प्रदर्शन काफी खराब रहा है ।

सन् 1996 में अटलांटा में आयोजित ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन बहुत अधिक निराशाजनक रहा है । अंतिम पदक तालिका में भारत के नाम केवल एक रजत पदक था, जबकि डेनमार्क, पुर्तगाल, इंडोनेशिया, ईरान, हांगकांग और केन्या जैसे छोटे राष्ट्र भी पदक हासिल करने में सफल रहे ।

1998 के बैंकाक एशियाई खेलों में भारत 7 स्वर्ण, 11 रजत और 17 कांस्य पदक जीतकर कुछ बेहतर प्रदर्शन करके गिरते खेल स्तर में विराम लगाने की कोशिश में सफल रहा । 1954 और 1958 के एशियाई खेलों में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा । बैंकाक एशियाई खेलों में भारत का पांचवाँ सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा ।

क्रिकेट में भी हमारा पुराना गौरव समाप्त होता जा रहा है । 1983 में विश्व कप जीतने वाला भारत 1999 के विश्व कप के सुपरसिक्स में भी काफी कठिन प्रतिस्पर्धा के बाद स्थान पा सका । इसका खेल उच्च स्तरीय नहीं रहा । विश्व कप के बाद भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच एवं एक-दिवसीय श्रृंखला भी गंवा बैठी । हमारे क्रिकेट खिलाड़ियों की धार कुंद-सी होती जा रही है ।

आज हमें अपनी विजय का भरोसा ही नहीं होता । कभी-कभी हम स्वयं अपने प्रदर्शन पर चकित रह जाते हैं । यह भी सच है कि पिछले कुछ वर्षो में हमारे देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की योग्यता रखने वाले कुछ खिलाड़ी चमके हैं । साधारणतया हमें कुछ योग्य खिलाड़ियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है । टेनिस में हमारी आशा का केन्द्र लिएंडर पेस हैं । बैडमिंटन में भी हमारी आशाएं कई खिलाड़ियों पर टिकी हैं ।

दौड़ के क्षेत्र में तो पी.टी. उषा के संन्यास लेने के बाद शाइनी विल्सन, ज्योतिर्मयी सिकदर और अश्विनी नाचप्पा पर हमारी निगाहें टिकी हैं । इनके बाद हमारे खेलों का भविष्य क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है । खेल के क्षेत्र में राजनीति के प्रवेश के कारण कमियां उत्पन्न हो गई हैं । अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों के चयन में राजनीति या बड़े अधिकारी का दबाव हानिकारक होता है ।

यह सच है कि भारत में 1982 में एशियाई खेलों और 1987 में विश्व कप क्रिकेट श्रृंखला का आयोजन अत्यंत सफलतापूर्वक हुआ । लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर की इन प्रतियोगिताओं के आयोजन मात्र से खेल का स्तर उठ नहीं सकता ।

हमारा देश घनी आबादी वाला देश है । हम अधिक संख्या में महिलाओं और पुरुषों को खेल के क्षेत्र में प्रोत्साहन दे सकते हैं । सर्वप्रथम, अच्छे खिलाड़ियों का चुनाव उनके बाल्यकाल से ही कर लिया जाना चाहिए । उनकी प्रतिभा और विभिन्न खेलों में रुचि की दृष्टि से उन्हें भिन्न-भिन्न वर्गो में विभाजित किया जाना चाहिए ।

तत्पश्चात उन्हें उचित प्रशिक्षण की सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए ताकि उनकी प्रतिभा का विकास हो सके । साथ ही सरकार को भी उन योग्य खिलाड़ियों को पुरस्कृत कर उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए । सरकार को इस कार्य को सामाजिक कल्याण के स्तर पर करना चाहिए । खेलों में सुधार के लिए पटियाला में स्थापित खेल संस्थान की भांति अन्य स्थानों पर भी संस्थान खोले जाने चाहिए । उचित प्रशिक्षण के द्वारा ही भारत में खेलों का स्तर ऊँचा उठ सकता है ।

हमारे देश में खेल के क्षेत्र की उपलब्धियाँ अत्यंत क्षीण हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है । यदि स्वस्थ वातावरण तैयार किया जाए और चयन उचित प्रक्रिया द्वारा किया जाए, तो हम इस क्षेत्र में बहुत कुछ कर सकते हैं ।

किसी वरिष्ठ खिलाड़ी के सम्मान के लिए कार्यक्रम या अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के आयोजन द्वारा यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता । इसके लिए अपने खिलाड़ियों को प्रत्येक सुविधा प्रदान कराना जरूरी है, ताकि वे अंपने खेल को गंभीरतापूर्वक लें । इन आवश्यक प्रयासों के द्वारा ही विश्व के खेल मानचित्र पर भारत का नाम अंकित हो पाएगा ।

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