भारत में लोक सेवा के विकास के वर्णन कीजिए
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भारत में लोक सेवा का इतिहास बड़ा पुराना है। भारत में लोक सेवा का आरंभ प्राचीन काल से ही होने लगा था. जब भारतीय राजा-महाराजा अपने राजकाज में शासन संचालन के लिए कर्मचारी आदि रखते थे। यह लोकसेवा का प्राचीन रूप था।
प्राचीन भारत में भले ही आज जैसी आधुनिक लोकसेवा नहीं मिलती हो, लेकिन उस समय की परिस्थितियों के अनुसार लोक सेवाओं का गठन किया जाता था। उदाहरण के लिए मौर्य प्रशासन में लोक सेवाओं का वर्णन मिलता है, जिसमें अध्यक्ष, राजुक, पण्याध्यक्ष, सीताध्यक्ष जैसे लोकसेवक, लोकअधिकारी होते थे। अकबर ने भी अपने शासनकाल में एक भूमि राजस्व प्रणाली आरंभ की थी और उसके लिए अनेक अधिकारियों के नए पदों का सृजन किया था।
भारत की जो भी वर्तमान लोकव्यवस्था प्रचलित है, उस ढांचे की नींव अंग्रेजों द्वारा रखी गयी। अग्रेज अफसर लार्ड कार्नवालिस ने इन सेवाओं को पेशेवर बनाया। लार्ड मैकाले की सिफारिश पर ही लोकसेवा परीक्षाओं का आयोजन प्रारंभ किया गया।
भारत में लोक सेवा की एक लंबी यात्रा रही है, जिसमें शासन का स्वरूप बदलता गया। पहले जहां राष्ट्रीय शासन व्यवस्था में लोक सेवा अपने शासक वर्ग के हितों के प्रति उत्तरदायी होती थी, वहीं आज लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में लोकसेवक जनता के हितों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
वर्तमान लोकसेवा जो कि नौकरशाही के द्वारा संचालित होती है, आज लोकतंत्र का एक प्रमुख स्तंभ है। यद्यपि लोकतंत्र में लोकनीति का निर्माण विधायिका करती है, लेकिन इन सारी लोकनीतियों के क्रियान्वयन का दायित्व लोक सेवा के ऊपर ही होता है। किसी भी लोकतंत्र में कार्यपालिका की सफलता लोक सेवा की कार्य क्षमता पर निर्भर करती है। क्योंकि लोकसेवक यदि सक्षम होंगे और लोकसेवा अपनी भूमिका तत्परता से निभाई की तो सरकार के शासन संबंधी कार्य भी सफलतापूर्वक संपन्न होंगे। इससे सरकार के प्रति आम जनता की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
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