भारत में लोकतांत्रिक साशन प्रणाली किउ अपनाय गया है
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17वीं शताब्दी में लॉक के समय से ही विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किसी भी राजनीतिक समाज की आवश्यक शर्त माना जाता रहा है. अमरीकी संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जगह दी गई, जिसका समर्थन नैतिकतावादी जॉन स्टुअर्ट मिल ने भी किया था. इस स्वतंत्रता को मनुष्यता की आवश्यक शर्त के रूप में देखा जाता है.
दमित लोग और दमन के तरीके एक समाज से दूसरे समाज में बदलते रहते हैं लेकिन हमें समझना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी सामाजिक जीवन के विरुद्ध होती है.
जब हम किसी की धर्मनिष्ठता पर सवाल उठाते हैं, तो हम किसी की मान्यता पर सवाल नहीं उठा रहे होते, बल्कि जीवन की एक शैली और सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठा रहे होते हैं, जो उस पर निर्भर होता है.
साम्यवाद की विफलता को रूस के संदर्भ में समझा जा सकता है. साम्यवादी देशों में किसी भी फ़ैसले का विश्लेषण किए बिना उनको लागू किया गया और अंत में उनको मुंह की खानी पड़ी. डर है कि कहीं हमारे नेता भी तो वही गलती नहीं कर रहे और लोकतंत्र के झंडे तले फ़ैसले लेते जा रहे है और यह देखने के लिए भी नहीं रुक रहे कि लोकतंत्र की ज़रूरत क्या है?