भारत में मानव विकास अवसरों और उपेक्षाओं व वंचनाओ का मिला जुला थैला है। तर्क देकर स्पष्ट कीजिए।
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नई दिल्ली, 14 सितंबर, 2018 – मानव विकास सूचकांक के ताजा अनुक्रम के अनुसार, 189 देशों में से भारत एक पायदान ऊपर चढ़कर 130 पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने यह अनुक्रम आज जारी किया। 2017 के लिए भारत का मानव विकास सूचकांक स्तर 0.640 है जिससे उसे मध्यम मानव विकास की श्रेणी में स्थान मिल गया है। 1990 और 2017 के बीच भारत का मानव विकास सूचकांक स्तर 0.427 से बढ़कर 0.640 हो गया जो करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि है। मानव विकास सूचकांक में यह वृद्धि लाखों लोगों को गरीबी के दलदल से निकालने की भारत की उल्लेखनीय उपलब्धि का संकेत है।
नार्वे, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी इस सूची में सबसे ऊपर हैं, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और आमदनी के मामले में राष्ट्रीय उपलब्धियों के मानव विकास सूचकांक के स्तर में नाइजेर, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, चाड और बुरुंडी के अंक सबसे कम हैं। दक्षिण एशिया में भारत का मानव विकास सूचकांक स्तर क्षेत्र के लिए 0.638 के औसत से ऊपर है। एक समान आबादी वाले देश बांग्लादेश और पाकिस्तान का स्थान क्रमश: 136 और 150वां है।
विश्व भर में देखा जाए तो कुल मिलाकर मानव विकास के स्तर में सुधार के रुझान हैं। मानव विकास की श्रेणियों में अनेक देश आगे बढ़ते जा रहे हैं। जिन 189 देशों में मानव विकास सूचकांक की गणना की जाती है उनमें से 59 आज बहुत ऊंचे मानव विकास समूह में हैं और सिर्फ 38 देश मानव विकास सूचकांक के सबसे निचले समूह में हैं। सिर्फ आठ वर्ष पहले 2010 में यह आंकड़ा क्रमश: 46 और 49 देशों का था।
मानव विकास सूचकांक में सुधार या कमी स्वास्थ्य, शिक्षा और आमदनी में बदलाव से होती है। जन्म के समय जीवन की संभावना विश्व भर में लगभग 7 वर्ष बढ़ी है और स्वास्थ्य में यह उल्लेखनीय सुधार का संकेत है। सब सहारन अफ्रीका और दक्षिण एशिया में यह प्रगति सबसे अधिक हुई है, जहाँ 1990 से लेकर इन दोनों ही क्षेत्रों में करीब 11 वर्षों की वृद्धि देखने को मिली है। 1990 की तुलना में स्कूल आयु के बच्चों के लिए आज 4 वर्ष अधिक स्कूल में रहने की संभावना है।
1990 और 2017 के बीच भारत में भी जन्म के समय जीवन की संभावना करीब 11 वर्ष बढ़ी है तथा स्कूल में बिताए जाने वाले अनुमानित वर्षों में भी और अधिक उल्लेखनीय सफलता मिली है। भारत में 1990 की तुलना में आज स्कूल आयु के बच्चे 4.7 वर्ष अधिक स्कूल में पढ़ने की संभावना है, जबकि भारत के प्रतिव्यक्ति जीएनआई में 1990 और 2017 के बीच 266.6 प्रतिशत की भारी वृद्धि देखने को मिलती है।
देशों के बीच और उनके भीतर विसंगतियां अब भी प्रगति में बाधक
मानव विकास सूचकांक के औसत स्तरों में 1990 से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह वृद्धि वैश्विक स्तर पर 22 प्रतिशत और सबसे कम विकसित देशों में 51 प्रतिशत हुई है जिससे पता चलता है कि लोगों की औसत आयु बढ़ रही है, वे अधिक शिक्षित हो रहे हैं और ज्यादा आमदनी भी ले रहे हैं। किन्तु विश्व भर में जन कल्याण की स्थिति में भारी अंतर अब भी मौजूद है।
मानव विकास सूचकांक के सबसे ऊंचे स्तर पर मौजूद नार्वे देश में आज जन्म लेने वाले बच्चे के 82 वर्ष की आयु के बाद भी जीवित रहने और लगभग 18 वर्ष स्कूल में पढ़ने की संभावना है। दूसरी तरफ मानव विकास सूचकांक के सबसे निचले स्तर पर मौजूद नाइजेर देश में जन्मे बच्चे के लिए सिर्फ 60 वर्ष की आयु तक जीने और सिर्फ 5 वर्ष स्कूल में बिताने की संभावना है। इस तरह के जबर्दस्त अंतर बार-बार दिखाई देते हैं।
यूएनडीपी के प्रशासक आखिम स्टाइनर ने बताया, ”आज निम्न मानव विकास वाले देश में जन्मे बच्चे का जीवन साठ वर्ष से कुछ अधिक रहने की संभावना है, जबकि बहुत ऊंचे मानव विकास वाले देश में जन्मा बच्चा लगभग 80 वर्ष की आयु तक जीने की उम्मीद कर सकता है। इसी तरह, कम मानव विकास वाले देशों में बच्चे बहुत उच्च मानव विकास देशों में बच्चों की तुलना में सात साल से कम स्कूल में रहने की उम्मीद कर सकते हैं। वैसे तो ये आंकड़े अपने आप में बहुत कठोर तस्वीर दिखाते हैं। किन्तु ये उन लाखों लोगों के जीवन की त्रासदी भी बयान करते हैं जो असमानता और खोए हुए अवसरों की मार सहते हैं, जबकि इन दोनों में से कोई भी अपरिहार्य नहीं हैं।”
मानव विकास सूचकांक के भागों को करीब से देखने पर देशों के भीतर शिक्षा, जीवन की संभावना और आमदनी में परिणामों का असमान वितरण दिखाई देता है। असमानता संयोजित मानव विकास सूचकांक से देशों के भीतर असमानता के स्तरों की तुलना की जा सकती है। यह असमानता जितनी अधिक होगी उस देश का मानव विकास सूचकांक उतना ही नीचे चला जाएगा।
वैसे तो कुछ सबसे अमीर देशों सहित अनेक देशों में उल्लेखनीय असमानताएं मौजूद हैं फिर भी निचले मानव विकास स्तरों वाले देशों में औसतन इसकी मार अधिक पड़ती है। निम्न और मध्यम मानव विकास वाले देश असमानता के कारण अपना मानव विकास स्तर क्रमश: 31 और 25 प्रतिशत गंवा देते हैं, जबकि बहुत ऊंचे मानव विकास वाले देशों में औसत क्षति 11 प्रतिशत है।
यूएनडीपी में मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय के निदेशक सलीम जहान के अनुसार, ”वैसे तो यह बात बहुत आशाजनक है कि फासले कम हो रहे हैं, फिर भी जन कल्याण में विसंगतियां अब भी अस्वीकार्य स्तर पर फैली हुई हैं। देशों के बीच और देशों के भीतर हर रूप और आयाम में मौजूद असमानता जनता के लिए विकल्पों और अवसरों को सीमित करती है और प्रगति को अवरुद्ध करती है।”