Geography, asked by meenakshinagar1212, 2 months ago

भारत में नगरों के वितरण का विस्तृत वर्णन कीजिए।​

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Answered by guptajitendrabca1
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Explanation:

अपने कार्यों के सम्बंध में शहर एवं गांव एक-दूसरे से भिन्नता रखते हैं। गांव मुख्यतः कृषि से सम्बद्ध उत्पादन से जुड़े होते हैं। अधिशेष उत्पादन गांव द्वारा वस्तु विनिमय के निमित्त उपयोग में लाया जाता है। जिस गांव तक अन्य गांवों की पहुंच होती है, वह वस्तु विनिमय का नाभिकीय केंद्र बन जाता है। यह शीघ्र ही कस्बे के रूप में विकसित हो जाता है। जब एक कस्बा अस्तित्व में आता है, तो वह एक या कई कारकों पर आधारित कार्यों को अर्जित कर लेता है। इन कार्यों का पदानुक्रम निम्न प्रकार से होता है-

प्रसंस्करण: यह एक कस्बे का सर्वाधिक मूलभूत कार्य होता है, जिसके अंतर्गत कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण किया जाता है, उदाहरण के लिए-गेहूं का आटे में तथा तिलहन का तेल में सर्वाधिक सुगम पहुंच वाला गांव सामान्यतः प्रसंस्करण केंद्र बन जाता है। संभवतः यह प्राचीनतम कस्बों के उदय का प्रमुख कारण रहा होगा।

व्यापार: प्रसंस्करण के उपरांत, कस्बों का अगला स्तर व्यापार से जुड़ा होता है, जो प्रसंस्करित माल या विनिर्मित उत्पादों के विनिमय केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं। ये बाजार साप्ताहिक या दैनिक आधार पर संचालित होते हैं। संपूर्ण भारत में साप्ताहिक बाजारों का आयोजन एक सामान्य विशेषता है। ये केंद्र एक या अधिक वस्तुओं के सम्बंध में विशेषीकृत हो सकते हैं, जैसे- खाद्यान्न, फल व सब्जी, पालतू पशु इत्यादि।

कृषि-उत्पादों का थोक व्यापार: ऐसे शहर नगरों के कार्यात्मक प्रतिरूप में अगले उच्च स्तर का निर्माण करते हैं। परिवहन सुविधा इन शहरों में एक निर्णायक कारक होती है। इन शहरों में प्रसंस्करण कार्यों के अतिरिक्त विनिर्माण गतिविधि एवं अन्य सेवाओं का विकास भी होता है। ये छोटे आकार के शहर सामान्यतः परिक्षिप्त होते हैं। इनमें एक या अधिक वस्तुओं का विशेष स्थान हो सकता है। उदाहरणार्थ, हापुड़ खाद्यान्नों के थोक व्यापार का केंद्र है, जबकि अहमदाबाद सूती वस्त्र, सांगली हल्दी, बंगलौर रेशम तथा गुंटूर तंबाकू के लिए प्रसिद्ध हैं।

सेवाएं: इनके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, संचार इत्यादि सम्मिलित हैं। ये सेवाएं सामान्यतः गांवों में उपलब्ध नहीं हो सकती। इन सभी कार्यों में प्रशासन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। एक नगर पंचायत संघ, राज्य सहकारी समिति या एक जिले का मुख्यालय हो सकता है। प्रशासनिक नगरों में कानूनी अदालतें, पुलिस स्टेशन एवं अन्य सरकारी विभाग भी होते हैं। चंडीगढ़ प्रशासनिक नगर का एक अच्छा उदाहरण है।

विनिर्माण एवं खनन: इस प्रकार की गतिविधियां बड़े नगरों के उदय में योगदान देती हैं, क्योंकि इनसे बड़े स्तर पर रोजगार अवसरों का जन्म होता है तथा व्यापार, सेवा, यातायात, सहायक उद्योग जैसी अन्य उपयोगी आर्थिक गतिविधियों का विकास होता है। ये गतिविधियां संलग्न क्षेत्रों से वृहत स्तर पर प्रवासन को आकर्षित करती हैं। टाटा आयरन एंड स्टील वर्क्स के चारों ओर जमशेदपुर का विकास हुआ जबकि कोलार एवं रानीगंज खनन गतिविधियों के फलस्वरूप विकसित हुए।

परिवहन: सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियों तथा नगर के विकास एवं अग्र विस्तार हेतु परिवहन एक मूलभूत आवश्यकता है। इसीलिए अनेक नगर रेलवे स्टेशनों या बंदरगाहों के आस-पास विकसित हुए हैं। दक्षिण भारत में जोलार पेट्टी नामक शहर एक रेलवे जंक्शन के चारों ओर विकसित हुआ है। कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, कांडला, पारादीप इत्यादि नगरों का विकास बंदरगाहों के आस-पास हुआ है।

तीर्थ भ्रमण/पर्यटन: तीर्थ भ्रमण यात्रा एवं अस्थायी निवास से जुड़ी महत्वपूर्ण गतिविधि है। तीर्थस्थलों पर परिवहन एवं यात्री निवास की सुविधाओं का विकास होता है। तिरुपति, हरिद्वार, मथुरा, वाराणसी एवं रामेश्वरम तीर्थ स्थानों के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। दार्जिलिंग, शिमला, ऊटकमंड पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हुए कुछ नगरों में से हैं।

आवासीय सुविधाएं: आवासीय कार्यों व सुविधाओं वाले शहर प्रायः बड़े नगरों के चरों ओर विकसित होते हैं, जहाँ निम्न कीमत वाली भूमि सस्ती मूलभूत सुविधाएं तथा मुख्य नगर के साथ त्वरित सम्पर्क कायम करने वाली परिवहन व्यवस्था उपलब्ध होती है। सोनीपत, फरीदाबाद, नोएडा जैसे नगर दिल्ली के चारों ओर विकसित हुए हैं, जिनमें विनिर्माण गतिविधियों का विकास भी हुआ है।

किसी नगर के कार्य उसकी अवस्थिति, आधारभूत संरचना, सुविधाओं तथा ऐतिहासिक व आर्थिक कारणों पर आधारित होते हैं। अधिप्रभावी कार्य के उस गतिविधि विशेष में संलग्न व्यक्तियों की संख्या के आधार पर पहचाना जा सकता है।

से घटता जाता है। शहरी प्रभाव को मूलतः जनसंख्या की रोजगार संरचना से मापा जाता है। यदि जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग गैर-कृषि गतिविधियों में संलग्न है, तब उस क्षेत्र को शहरी माना जा सकता है अन्यथा यह एक ग्रामीण क्षेत्र होता है।

ग्रामीण-शहरी विच्छेद सीमा क्षेत्र में ग्रामीण एवं शहरी विशेषताएं आपस में गुंथ जाती हैं। उदाहरण के लिए, फलों व सब्जियों की खेती इस क्षेत्र को ग्रामीण चरित्र प्रदान करती है, जबकि एक कारखाने की अवस्थितिइसे शहरी रूप दे देती है। इस प्रकार यह क्षेत्र एक शहरी-ग्रामीण स्थिरांक को प्रदर्शित करता है।

यदि इस क्षेत्र में शहरी विकास की गति मद्धिम होगी तो इसका भौतिक विस्तार भी धीमा होगा। इस क्षेत्र के विस्तार में परिवहन की निर्णायक भूमिका होती है।

मुख्य शहर के लोग इस विच्छेद सीमा क्षेत्र में बसना पसंद करते हैं क्योंकि यहां शहरी एवं ग्रामीण-दोनों प्रकार के जीवन का आनंद उठाया जा सकता है। धीरे-धीरे इस क्षेत्र की अपनी खुद की आधार संरचना एवं सेवाएं विकसित हो जाती हैं। सस्ते एवं तीव्रतर परिवहन के अतिरिक्त अन्य रियायतें उपलब्ध कराकर इस क्षेत्र की ओर होने वाले प्रवासन को प्रोत्साहित किया जा

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