History, asked by jyotisoni30112000, 7 months ago

भारत में पंचायती राज के संबंध में 73 वें संशोधन अधिनियम के कार्यान्वयन पर एक निबंध लिखें ।​

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Answered by uddhavyadav2010
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Explanation:

भारत में पंचायती राज व्यवस्था

पंचायत भारतीय समाज की बुनियादी व्यवस्थाओं में से एक रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं, महात्मा गांधी ने भी पंचायतों और ग्राम गणराज्यों की वकालत की थी। स्वतंत्रता के बाद से, समय– समय पर भारत में पंचायतों के कई प्रावधान किए गए और 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ इसको अंतिम रूप प्राप्त हुआ था. अधिनियम का उद्देश्य पंचायती राज की तीन– स्तरीय व्यवस्था प्रदान करना है, इसमें शामिल हैं–

क) ग्राम– स्तरीय पंचायत

ख) प्रखंड (ब्लॉक)– स्तरीय पंचायत

ग) जिला– स्तरीय पंचायत

73वें संशोधन अधिनियम की विशेषताएं

• ग्राम सभा गांव के स्तर पर उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है और वैसे काम कर सकती है जैसा कि राज्य विधान मंडल को कानून दिया जा सकता है।

• प्रावधानों के अनुरुप ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तरों पर पंचायतों का गठन प्रत्येक राज्य में किया जाएगा।

• एक राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का गठन बीस लाख से अधिक की आबादी वाले स्थान पर नहीं किया जा सकता।

• पंचायत की सभी सीटों को पंचायत क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों से भरा जाएगा, इसके लिए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की आबादी और आवंटित सीटों की संख्या के बीच का अनुपात, साध्य हो, और सभी पंचायत क्षेत्र में समान हो।

• राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, पंचायतों में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर या जिन राज्यों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत नहीं हैं वहां, जिला स्तर के पंचायतों में, पंचायतों के अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण

अनुच्छेद 243 डी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों को आरक्षित किए जाने की सुविधा देता है। प्रत्येक पंचायत में, सीटों का आरक्षण वहां की आबादी के अनुपात में होगा। अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कुल आरक्षित सीटों के एक– तिहाई से कम नहीं होगी।

महिलाओं के लिए आरक्षण– अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक –तिहाई से कम सीटें आरक्षित नहीं होनी चाहिए। इसे प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरा जाएगा और महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।

अध्यक्षों के कार्यलयों में आरक्षण– गांव या किसी भी अन्य स्तर पर पंचायचों में अध्यक्षों के कार्यालयों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण राज्य विधान–मंडल में, कानून के अनुसार ही होगा।

Answered by Anonymous
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Answer:

भारत में पंचायती राज के संबंध में 73 वें संशोधन अधिनियम

Explanation:

भारतीय संविधान में 73rd संविधान संशोधन अधिनियम (73rd Amendment Act) ने एक नया भाग IX सम्मिलित किया है. इसे The Panchayats नाम से उल्लेखित किया गया और अनुच्छेद 243 से 243(O) के प्रावधान सम्मिलित किये गए. इस कानून ने संविधान में एक नयी 11वीं अनुसूची भी जोड़ी. इसमें पंचायतों की 29 कार्यकारी विषय वस्तु हैं. इस कानून ने संविधान के 40वें अनुच्छेद को एक प्रयोगात्मक आकार दिया जिसमें कहा गया है कि – “ग्राम पंचायतों को व्यवस्थित करने के लिए राज्य कदम उठाएगा और उन्हें उन आवश्यक शक्तियों और अधिकारों से विभूषित करेगा जिससे कि वे स्वयं-प्रबंधक की ईकाई की तरह कार्य करने में सक्षम हो.” यह अनुच्छेद राज्य के नीति निदेशक तत्वों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.

इस अधिनयम ने पंचायती राजसंस्थाओं को एक संवैधानिक दर्जा दिया अर्थात् इस अधिनियम के प्रावधान के अनुसार नई पंचायतीय पद्धति को अपनाने के लिए राज्य सरकार संविधान की बाध्यता के अधीन है. अतः राज्य सरकार की इच्छा पर न तो पंचायत का गठन और न ही नियमित अंतराल पर चुनाव होना निर्भर करेगा.

73वाँ संशोधन अधिनियम (73rd Amendment Act) के प्रावधानों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –

अनिवार्य

स्वैच्छिक

कानून के अनिवार्य नियम में सम्मिलित हैं – नई पंचायतीराज पद्धति. दूसरे भाग में स्वैच्छिक प्रावधान को राज्यों के निर्देशानुसार सम्मिलित किया जाता है, अतः स्वैच्छिक प्रावधान राज्य के नई पंचायतीराज पद्धति को अपनाते समय भौगोलिक, राजनीतिक और प्रशासनिक तथ्यों को ध्यान में रखकर अपनाने का अधिकार सुनिश्चित करता है. अर्थात् भारत की संघीय पद्धति में केंद्र और राज्यों के संतुलन को कानून प्रभावित नहीं करता. फिर भी यह राज्य (स्थानीय सरकार) मुद्दे पर केन्द्रीय कानून है. कानून राज्य के अधिकार – क्षेत्र पर अतिक्रमण नहीं करता जिसे पंचायतों को ध्यान में रखकर पर्याप्त स्वैच्छिक शक्तियाँ दी गई हैं. यह कानून देश में जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक संस्थाओं की उन्नति में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. यह प्रातिनिधिक लोकतंत्र (Representative Democracy) और भागीदारी लोकतंत्र (Participative Democracy) में बदलता है. यह देश में लोकतंत्र को सबसे निचले स्तर पर तैयार करने की एक युगान्तकारी और क्रांतिकारी सोच है.

73वाँ संशोधन अधिनियम की विशेषताएँ

इस 73वाँ संशोधन अधिनियम (73rd Amendment Act), 1993 द्वारा संविधान में एक नया भाग, भाग IX और नई अनुसूची 11वीं अनुसूची जोड़ी गई है और पंचायत राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है. इस अधिनियम की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं –

ग्राम सभा

पंचायतों का गठन

चुनाव

आरक्षण

सदस्यों की योग्यताएँ

विषयों का हस्तांतरण

ग्राम सभा

ग्राम सभा गाँव के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगी और ऐसे कार्यों को करेगी जो राज्य विधानमंडल विधि बनाकर उपलब्ध करें.

पंचायतों का गठन

अनुच्छेद 243ख त्रिस्तरीय पंचायती राज का प्रावधान करता है. प्रत्येक राज्य ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर और जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं का गठन किया जायेगा, किन्तु उस राज्य में जिसकी जनसंख्या 20 लाख से अधिक नहीं है, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन करना आवश्यक नहीं होगा.

चुनाव

पंचायत स्तर पर सभी ग्राम पंचायतों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा और जिला परिषद् के स्तर पर अप्रत्यक्ष चुनाव होगा. मध्यवर्ती स्तर की संख्या के अध्यक्ष का चुनाव प्रयत्क्ष हो या अप्रत्यक्ष यह बात सम्बंधित राज्य सरकार द्वारा निश्चित की जाएगी. हर पंचायती निकाय की अवधि पाँच साल की होगी. यदि प्रदेश की सरकार 5 साल पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो इसके 6 महीने के भीतर नए चुनाव हो जाने चाहिए. निर्वाचित स्थानीय निकायों के अस्तित्व को सुनिश्चित रखने वाला यह महत्त्वपूर्ण प्रावधान है. 73 वें संशोधन (73rd Amendment)से पहले कई प्रदेशों से पहले कई प्रदेशों में जिला पंचायती निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से होते थे और पंचायती संस्थाओं को भंग करने के बाद तत्काल चुनाव कराने के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं था.

आरक्षण

पंचायती राज संस्थाओं के कुल स्थानों में 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात के आधार पर स्थान आरक्षित होंगे. यदि प्रदेश सरकार जरुरी समझे, तो वह अन्य पिछड़ा वर्ग को भी सीट में आरक्षण दे सकती हैं. तीनों ही स्तर पर अध्यक्ष (Chairperson) पद तक आरक्षण दिया गया है.

सदस्यों की योग्यताएँ

पंचायत का सदस्य निर्वाचित होने के लिए निम्न योग्यताएँ (eligibility) आवश्यक होंगी –

नागरिक  ने 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो.

वह व्यक्ति प्रवृत्त विधि के अधीन राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित होने की योग्यता (आयु के अतिरिक्त अन्य योग्यताएँ) रखता हो.

वह सम्बंधित राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के अधीन पंचायत का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो.

विषयों का हस्तांतरण

ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं. इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हंस्तारित किया गया है. अधिकांश मामलों में इन विषयों का सम्बन्ध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है. इन कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है. हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है. वस्तुतः पंचायतें 11वीं अनुसूची में वर्णित विषयों और कृषि, भूमि सुधार, भूमि विकास, पेयजल, ग्रामीण बिजलीकरण, प्रौढ़ शिक्षा, महिला और बाल विकास, दुर्बल वर्गों का कल्याण आदि के माध्यम से सामजिक-आर्थिक परिवर्तन का प्रयास कर सकती है.

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