भारत में पाई जाने वाली मृदा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
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भारत में मिट्टी के प्रकार
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Council of Agricultural Research-I.C.A.R.) ने भारतीय मिट्टी को 8 भागों में बांटा है-
लाल मिट्टी Red Soil
काली मिट्टी Black Soil
लैटेराइट मिट्टी Laterite Soil
क्षारयुक्त मिट्टी Saline and Alkaline Soil
हल्की काली एवं दलदली मिट्टी Peaty and Other Organic soil
रेतीली मिट्टी Arid and Desert Soil
कांप मिट्टी Alluvial Soil
वनों वाली मिट्टी Forest Soil
लाल मिट्टी Red Soil
यह मिट्टी अपक्षय के प्रभाव से चट्टानों के टूट-फुट से बनती है| आयरन ऑक्साइड की अधिकता के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखता है| यह मिट्टी प्रमुख रूप से मध्य-प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, छोटा नागपुर के पठार, आंध्र प्रदेश के दण्डकारण्य क्षेत्र, पश्चिम बंगाल और मेघालय में पाई जाती है| पठार तथा पहाड़ियों पर इन मिट्टियों की उर्वराशक्ति कम होती है और ये कंकरीली तथा रूखडी होती हैं, किंतु नीचे स्थानों में अथवा नदियों की घाटियों में ये दोरस हो जाती हैं और अधिक उपजाऊ हो जाती है और इनमें निक्षालन (Leaching) भी अधिक हुआ है। तटीय मैदानों और काली मिट्टी के क्षेत्र को छोड़कर, प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश भाग में लाल मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज पैदा होते है जैसे गेंहू, धान, अलसी आदि। इस मिट्टी का संघटन इस प्रकार है-
कांप मिट्टी Alluvial Soil
उत्तर के विस्तृत मैदान तथा प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानों में मिलती है। यह अत्यंत ऊपजाऊ है इसे जलोढ़ या कछारीय मिट्टी भी कहा जाता है यह भारत के लगभग 40% भाग में पाई जाती है| यह मिट्टी सतलज, गंगा, यमुना, घाघरा,गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है| इस मिट्टी में कंकड़ नही पाए जाते हैं। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और वनस्पति अंशों की कमी पाई जाती है| खादर में ये तत्व भांभर की तुलना में अधिक मात्रा में वर्तमान हैं, इसलिए खादर अधिक उपजाऊ है। भांभर में कम वर्षा के क्षेत्रों में, कहीं कहीं खारी मिट्टी ऊसर अथवा बंजर होती है। भांभर और तराई क्षेत्रों में पुरातन जलोढ़, डेल्टाई भागों नवीनतम जलोढ़, मध्य घाटी में नवीन जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। पुरातन जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र को भांभर और नवीन जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र को खादर कहा जाता है।
पूर्वी तटीय मैदानों में यह मिट्टी कृष्णा, गोदावरी, कावेरी और महानदी के डेल्टा में प्रमुख रूप से पाई जाती है| इस मिट्टी की प्रमुख फसलें खरीफ और रबी जैसे- दालें, कपास, तिलहन, गन्ना और गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी में जूट प्रमुख से उगाया जाता है।
काली मिट्टी Black Soil
यह मिट्टी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा से बनती है| भारत में यह लगभग 5 लाख वर्ग-किमी. में फैली है| महाराष्ट्र में इस मिट्टी का सबसे अधिक विस्तार है। इसे दक्कन ट्रॅप से बनी मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी में चुना, पोटॅश, मैग्निशियम, एल्यूमिना और लोहा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसका विस्तार लावा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि नदियों ने इसे ले जाकर अपनी घाटियों में भी जमा किया है। यह बहुत ही उपजाऊ है और कपास की उपज के लिए प्रसिद्ध है इसलिए इसे कपासवाली काली मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी में नमी को रोक रखने की प्रचुर शक्ति है, इसलिए वर्षा कम होने पर भी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। इसका काला रंग शायद अत्यंत महीन लौह अंशों की उपस्थिति के कारण है। इस मिट्टी का रासायनिक संघटन इस प्रकार है-
इसकी मिट्टी की मुख्य फसल कपास है। इस मिट्टी में गन्ना, केला, ज्वार, तंबाकू, रेंड़ी, मूँगफली और सोयाबीन की भी अच्छी पैदावार होती है।
लैटेराइट मिट्टी Laterite Soil
यह मिट्टी रासायनिक क्रियाओं तथा चट्टानो के टूट-फूट द्वारा शुष्क मौसम में बनती है। इस मिट्टी में भी आइरन ऑक्साइड की अधिकता पाई जाती है। यह देखने में लाल मिट्टी की तरह लगती है, किंतु उससे कम उपजाऊ होती है। ऊँचे स्थलों में यह प्राय: पतली और कंकड़मिश्रित होती है और कृषि के योग्य नहीं रहती, किंतु मैदानी भागों में यह खेती के काम में लाई जाती है। यह मिट्टी तमिलनाडु के पहाड़ी भागों, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में, दक्षिण भारत के पठार, राजमहल तथा छोटानागपुर के पठार, असम इत्यादि में सीमित क्षेत्रों में पाई जाती है। दक्षिण भारत में मैदानी भागों में इसपर धान की खेती होती है और ऊँचे भागों में चाय, कहवा, रबर तथा सिनकोना उपजाए जाते हैं। इस प्रकार की मिट्टी अधिक ऊष्मा और वर्षा के क्षेत्रों में बनती है। इसलिए इसमें ह्यूमस की कमी होती है और निक्षालन अधिक हुआ करता है। इस मिट्टी का रासायनिक संघटन इस प्रकार है-
रेतीली मिट्टी Arid and Desert Soil
यह मिट्टी शुष्क और अर्धशुष्क प्रदेशों जैसे – पश्चिमी राजस्थान और आरवाली पर्वत के क्षेत्रों, उत्तरी गुजरात, दक्षिणी हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाई जाती है। सिंचाई के सहारे गेंहू, गन्ना, कपास, ज्वार, बाजरा उगाये जाते हैं। जहाँ सिंचाई की सुविधा नहीं है वहाँ यह भूमि बंजर पाई जाती है।
क्षारयुक्त मिट्टी Saline and Alkaline Soil
शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों, दलदली क्षेत्रों, अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में यह मिट्टी पाई जाती है। इन्हे थूर (Thur), ऊसर, कल्लहड़, राकड़, रे और चोपन के नामों से भी जाना जाता है। शुष्क भागों में अधिक सिंचाई के कारण एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह दोषपूर्ण होने एवं जलरेखा उपर-नीचे होने के कारण इस मिट्टी का जन्म होता है। इस प्रकार की मिट्टी में भूमि की निचली परतों से क्षार या लवण वाष्पीकरण द्वारा उपरी परतों तक आ जाते हैं। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम और मैग्निशियम की मात्रा अधिक पायी जाने से प्रायः यह मिट्टी अनुत्पादक हो जाती है।
Answer
मृदा के प्रकार:-
1. जलोढ़ मृदा
- भारत के लगभग 45% क्षेत्रफल पर पाई जाती है!
- इस मिट्टी में पोटाश की बहूलता होती है
- सिंधु गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र द्वारा विकसित है
- बहुत उपजाऊ तथा गन्ना चावल गेहूं आदि फसलों के लिए उपयोगी है
2. काली मृदा
- रंग काला एवं अन्य नाम रेगर मृदा
- कपास की खेती के लिए उपयुक्त
- महाराष्ट्र मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है
- आयरन चुना एलमुनियम एवं मैग्नीशियम की बहूलता
3. लाल एवं पीली मृदा
- लोहे के कणों की अधिकता के कारण रंग लाल तथा कहीं-कहीं पीला भी
- तूने किस से माल में उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है
- उड़ीसा छत्तीसगढ़ मध्य गंगा के मैदान में गारो खासी वे जयंती के पहाड़ों पर पाई जाती है
4. लेटराइट मृदा
- उच्च तापमान और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित
- चाय में काजू के लिए उपयुक्त
- कर्नाटक केरल तमिलनाडु मध्य प्रदेश उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
5. मरुस्थलीय मृदा
- रंग लाल में भूरा
- रेतीली तथा लवणीय
- शुष्क जलवायु तथा उच्च तापमान के कारण जल वाष्पन की दर अधिक
- ह्यूमस और नमी की मात्रा कम
- उचित सिंचाई प्रबंध के द्वारा उपजाऊ बनाया जा सकता है
6. वन मृदा
- पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती है
- गठन में पर्वतीय पर्यावरण के अनुसार बदलाव
- नदी घाटियों में मृदा दोमट तथा सिल्टदार
- अधिसिल्क तथा ह्यूमस रहित
Explanation:
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