भारत में ‘पाश्चात्य सभ्यता बढ़ता प्रभाव’ विषय को आधार बनाकर दो युवाओं के मध्य होने वाले संवाद लगभग 50–60शब्दो
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रमेश-> राजेश नमस्ते! आज आने में इतनी देर क्यों हो गई?
राजेश ->मित्र आज मेरा जन्मदिन था और घर पर पूजा रखी थी जिस कारण थोड़ी देरी हो गई।
रमेश-> मित्र क्या शाम को केक पार्टी भी रखी है?
राजेश -> नहीं मित्र हमारे परिवार में जन्म दिन के ऊपर पूजा की जाती है।
रमेश-> सही बात है मित्र आज हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूल रहे हैं।
राजेश -> बिल्कुल मित्र आज हमारे देश में पाश्चात्य सभ्यता बढ़ती जा रही है और हम अपने संस्कृति और संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। हमारे मिलने, प्रणाम करने, कपड़े, रहन सहन आदि के सारे तौर-तरीके बदल चुके हैं।
रमेश-> बिल्कुल मित्र, जो हमारी पहचान है और शान है हमें उस संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।
भारत पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विषय पर वाद-विवाद
भारत पर पश्चिमी सभ्यता के बढ़ते प्रभाव को लेकर विद्वानों में काफी विवाद रहा है। कुछ इसे अच्छा मानते हैं तो कुछ इसे संस्कृति का हास है। इतना ही नहीं अब तो आम लोग भी इस विषय पर तर्क-वितर्क करने लगे हैं। रमेश और सुरेश के बीच इस विषय को लेकर हुई चर्चा से हम आपको बता रहे हैं कि भारत पर पश्चिमी सभ्यता के बढ़ते प्रभाव का क्या असर हो रहा है।
रमेश- भारतीय संस्कृति का विकास प्रकृति के क्रोड में हुआ है जो की ऋषि – कृषि संस्कृति होने के कारण सर्वाधिक प्रमुख एवं पहली विशेषता कही जाती है।
सुरेश- पाश्चात्य संस्कृति ईंट – पत्थरों के मकान को सर्वस्व मानती है। इसी के कारण भारत का आधुनिक विकास हुआ है।
रमेश- भारतीय संस्कृति ऊध्वर्गामी एवं आंग्ल विधायिका है। पाश्चात्य संस्कृति यूरोपीय पानी मिट्टी को सर्वस्व मानती है।
सुरेश- भारतीय संस्कृति वस्तुतः कृषि और ऋषि परम्परा पर आधारित होने के कारण इसका विकास वनों को काटकर अन्न उपजाने वाले किसानों एवं वन प्रदेश के एकांत स्थलों पर साधनारत तपस्वियों द्वारा हुआ है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति का विकास उन तत्वों को लेकर हुआ है जिन्हें भारतीय मनीषा सभ्यता के रूप में स्वीकार करती है।
रमेश- प्राचीर इतिहास में झाककर देखें तो मिलता है कि आर्य प्रवासी जब पहले पहल इस देश में आए तो उन्होंने यहाँ की भूमि को वेस्तीर्ण वन – उपवनों की भूमि के रूप में पाया इस भूमि की निषिद्ध वनों के हरित पल्लवित वृक्षों ने उन्हें तब प्रचंड गर्मी में शरण दी और तूफानी आँधियों से रक्षा करके अपने आचंल में आश्रय दिया जब वे इस भूमि को निवास योग्य बनाने का प्रयत्न कर रहें थे।
इस भूमि में पशुओं के लिए उन्हें चारागाह मिले। यज्ञ की अग्नि के लिए यथेष्ठ समिधाएँ मिली। कुटीर बनाने के लिय उन्हें यथेष्ठ लकड़ियाँ मिली और जब उन्हें इतनी सारी सुविधाएं मिली तो वे सुखपूर्वक रहने लगे और अपने बुद्धि कौशल द्वारा उन्होंने खेतों, गांवों, नगरों आदि का और अधिक विकास किया।
इस तरह हमारे भारत की सभ्यता का उद्भव जंगलों में हुआ और विशेष वातावरण में विकसित होकर विशिष्टता युक्त भारतीय संस्कृति हो गई। प्रकृति जिसकी माता बनी और उसी के क्रोड में उसका पालन पोषण हुआ।
सुरेश- आधुनिक सभ्यता अर्थात तथाकथित पाश्चात्य सभ्यता पूर्णत: स्टूल एवं जड़वादी कहा जाता है क्योकि मनुष्यों के मन पर इन दीवारों की गहरी छाप पड़ गयी है। यह प्रभाव अपने आत्मसात आदर्शों को भी दीवारों में बंद करने की प्रवृति को उकसाता है – अपने को हम प्रकृति से भिन्न देखने के अभ्यस्त हो चले है ? भारत की ऋषि – कृषि संस्कृति से पाश्चात्य सभ्यता की यह बहुत महत्वपूर्ण विलगता है।