भारत में राज्य कब कब धर्म की मान्यताओं में हस्तक्षेप करता है?
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¿ भारत में राज्य कब कब धर्म की मान्यताओं में हस्तक्षेप करता है ?
✎... भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, अर्थात यहां पर राज्य और धर्म को एक दूसरे से अलग रखा गया है। भारत में सभी धर्मों को समान महत्व प्राप्त है लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी हैं जब भारत धर्म की मान्यताओं के मामले में हस्तक्षेप कर सकता है।
- भारत में सभी को समानता का अधिकार है। यह किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों में आता है। जब धर्म द्वारा यानी किसी धार्मिक संस्थान द्वारा भारत के किसी नागरिक का मौलिक अधिकार का हनन होता हो तो राज्य धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकता है और वह नागरिक अदालत आदि के माध्यम से न्याय प्राप्त कर सकता है।
- जब दो धर्मों के बीच वैमनस्य और धार्मिक उन्माद की स्थिति पैदा हो तब भारत में राज्य धर्म की मान्यताओं के मामले में हस्तक्षेप कर सकता है।
- भारत में सबको अपना धर्म स्वतंत्र रूप से चुनने की आजादी है, लेकिन यदि कोई किसी पर धर्म ग्रहण करने या छोड़ने का दबाव डाले तो राज्य धर्म के विषय में हस्तक्षेप कर सकता है।
- जब कोई धार्मिक संस्थान किसी लैंगिक आधार पर, जाति के आधार पर अपने संस्थान से जुड़ने से मना कर दे तो राज्य उस धार्मिक संस्थान को आदेश दे सकता है अथवा अदालत के माध्यम से इस मामले का निपटारा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए भारत के धार्मिक स्थान जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च में लैंगिक आधार पर किसी महिला सदस्य को अथवा जाति के आधार पर किसी वर्ग के व्यक्ति को कोई पद देने से मना किया जाता है तो वह व्यक्ति अदालत में इस संबंध में न्याय प्राप्त कर सकता है।
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