Political Science, asked by nitika301020001030, 1 month ago

भारत में राजनीतिक दल जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनका विवेचन कीजिए​

Answers

Answered by rahulsporty2008
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Explanation:

कुछ महीनों पहले राजस्थान में कांग्रेस की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई थी. इसके बाद, राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के नेतृत्व को लेकर भी विरोध के सुर उठे थे. इन घटनाओं ने एक बार फिर से देश के राजनीतिक दलों के भीतर लोकतांत्रिक व्यवस्था की अहमियत को उजागर कर दिया है. भारत, दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से एक है, जहां बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली ख़ूब फल फूल रही है. पिछले सात दशकों के दौरान भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली को कई उतार चढ़ावों और चुनौतियों का सामना भले ही करना पड़ा हो, मगर हमारे देश मे लोकतंत्र बेहद मज़बूत स्थिति में है. और किसी अन्य देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरह भारत में भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने, जम्हूरी सियासत की जड़ें सींचने और सरकार की सत्ता को चलाने में राजनीतिक दलों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

लेकिन, मज़े की बात तो ये है कि भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से कहीं इस बात का ज़िक्र नहीं है कि देश में राजनीतिक दलों का संचालन किन दिशा निर्देशों के अनुसार हो. और, उनका नियमन कैसे किया जाना चाहिए. बल्कि, सच तो ये है कि हमारे संविधान में राजनीतिक दलों का भी ज़िक्र नहीं है. केवल 1951 के जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 29 (A) में ये लिखा हुआ है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण किया जाना चाहिए. भारत का चुनाव आयोग भी राजनीतिक दलों के संचालन में कोई भूमिका निभाने के लिए सशक्त नहीं है.

वर्ष 2002 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल वेलफेयर ऐंड अदर्स के मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि भारत का चुनाव आयोग किसी भी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई या दंडात्मक क़दम ये कह कर नहीं उठा सकता कि फलां राजनीतिक दल ने पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने के चुनाव आयोग के अधिकार को तो माना था. लेकिन, अदालत ने ये भी कहा था कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण किसी अन्य तरह के रजिस्ट्रेशन से बिल्कुल भिन्न है. इससे राजनीतिक दलों के संचालन और उनके अंदरूनी संगठन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करा पाना लगभग असंभव सा है. और इसी वजह से राजनीतिक दलों से लोकतांत्रिक व्यवहार की अपेक्षा करना भी मुश्किल हो जाता है.

वर्ष 2002 के

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