भारत में राष्ट्रवाद के उदय के तीन कारणों को लिखें ।
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औपनिवेशिक प्रशासन -ब्रिटिश शासन ने भारतीय ग्रामीण उद्योग और कृषि को नष्ट कर दिया था और ग्रामीण अर्थव्यस्था को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदल कर रख दिया था. इसके परिणामस्वरूप लोगों ब्रिटिश शासन प्रति आक्रोश की भावना का उदय हुआ. ब्रिटिश शासन द्वारा अपने हितों की पूर्ति के उद्देश्य से किया गया रेलवे का विस्तार तथा डाक एवं प्रशासनिक व्यवस्था के चलते देश के विभिन्न भागों में रह रहे लोगों और नेताओं के मध्य संपर्क संभव हो गया जिससे राष्ट्रवाद को बल मिला.ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव प्लासी और बक्सर के युद्ध के साथ आरम्भ हुआ जोकि बाद में बढ़ता ही गया. अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण आर्थिक तथा राजस्व नीति की प्रतिक्रिया के रूप में आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय हुआ.
भारतीय पुनर्जागरण -भारतीय पुनर्जागरण ने भी अपने दो स्वरूपों में राष्ट्रवाद की भावना को प्रश्रय दिया. पहला, उसने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, अनैतिकताओं, अवांछनीयताओं एवं रूढ़ियों मुक्ति का मार्ग दिखाया और दूसरा, श्वेतों के अधिभार (White Man’s Burden Theory) के विपरीत भारतीय संस्कृति के गौरव को पुनर्स्थापित किया. इसके परिणामस्वरूप देश में एक नवीन राष्ट्रीय चेतना की भावना को बल मिला. डलहौजी के कार्यकाल में रेलवे, टेलीग्राफी और आधुनिक डाक व्यवस्था आदि के विकास से भारत की परिवहन एवं संचार व्यवस्था में व्यापक बदलाव आया था. वैसे इन बदलावों के पीछे अंग्रेजों के औपनिवेशिक हित ही छिपे थे.
पाश्चात्य शिक्षा एवं चिन्तन -पाश्चात्य विचारों पर आधारित आधुनिक शिक्षा प्रणाली से भारतीय राजनीति में आत्मनिर्णय, स्वशासन, स्वतंत्रता, समानता, व्यक्तिवाद, मानवतावाद, राष्ट्रवाद तथा बंधुत्व जैसे विचार महत्त्वपूर्ण हो गये. पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों को पश्चिमी पुनर्जागरण के उदात्त मूल्यों से परिचित कराया तथा एक नया वैचारिक आयाम प्रदान किया. फ्रांसीसी क्रांति के आदेशों अर्थात् स्वतंत्रता समानता तथा बन्धुत्व की भावना ने भारतीयों के मन में राष्ट्रवाद का एक नया बीज बो दिया. परिणामस्वरूप वे भी अपने अधिकारों के प्रति सजग हो गये तथा भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नई दिशा मिली. देश के सभी बागों में अंग्रेजी भाषा की प्रशासनिक आवश्यकता और इसके प्रसार के कारण शिक्षित भारतीयों के बीच यह एक सम्पर्क की भाषा बन गई. इसके जरिये विचारों के आदान-प्रदान में सहायता मिली. एक सामान्य भाषा की उपस्थिति के कारण ही कांग्रेस अखिल भारतीय संस्था का रूप लेकर सफलतापूर्वक राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व कर सकी.
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