Hindi, asked by vhisnumalviya, 6 months ago

भारत में सूचना के की दशा और दिशा के बारे में बताइए​

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Answered by ayushkumar111801
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Answer:

आज हमारे देश के अन्न भण्डारों में लगातार बढ़ती आबादी को पर्याप्त भोजन

Explanation:

उपलब्ध कराने की सामर्थ्य है और किसी आकस्मिकता से निपटने के लिये यथेष्ट अनाज सुरक्षित भण्डारों में भी मौजूद है। हरे-भरे खेतों में उपजे अनाज को देश के कोने-कोने तक पहुँचाने और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराने की एक मजबूत प्रणाली भी काम कर रही है। इसलिये तमाम चुनौतियों के बावजूद खाद्य सुरक्षा का भविष्य उज्जवल और सुरक्षित दिखाई देता है।

scan0009अकाल और भुखमरी को करारी शिकस्त देकर भारत ने खाद्य सुरक्षा हासिल की है। आज हमारे देश के अन्न भण्डारों में लगातार बढ़ती आबादी को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने की सामर्थ्य है और किसी आकस्मिकता से निपटने के लिये यथेष्ट अनाज सुरक्षित भण्डारों में भी मौजूद है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाओं के माध्यम से विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं के लिये पर्याप्त आहार और पोषण की व्यवस्था की गई है। देश की लगभग 1.30 अरब आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि अनुसंधान एवं विकास ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे फसल, बागवानी और पशु-पक्षी उत्पादों के कुल उत्पादन और उत्पादकता में क्रांतिकारी वृद्धि हुई है। यह क्रम और प्रयास पहले से अधिक गहनता और तत्परता के साथ जारी हैं, इसलिये तमाम चुनौतियों के बावजूद खाद्य सुरक्षा का भविष्य उज्जवल और सुरक्षित दिखाई देता है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार खाद्य सुरक्षा का अर्थ है, “सभी व्यक्तियों की सभी समय पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक आहार तक भौतिक, सामाजिक और आर्थिक पहुँच हो और जो उनके सक्रिय तथा स्वस्थ जीवन के लिये उनकी आहार आवश्यकताओं तथा भोजन वरीयताओं को भी संतुष्ट करें।” इस परिभाषा के अनुसार खाद्य सुरक्षा में स्वाभाविक रूप से पोषण सुरक्षा का भी समावेश है। भारत ने पोषण सुरक्षा के नजरिए से भी उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं, जिनका प्रभाव सामाजिक स्वास्थ्य के क्रमिक सुधार के रूप में दिखाई देता है।

खाद्य उत्पादन में क्रांति

सन 1960 के दशक में हरितक्रांति के सूत्रपात ने भारत को पहली बार अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। इसी के साथ यह भी सुनिश्चित हुआ कि कृषि और सम्बन्धित उद्यमों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के दखल से उत्पादकता को कई गुना तक बढ़ाना संभव है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में इस ओर बढ़ाए गए ठोस कदमों और प्रयासों से आज अनाज उत्पादन बढ़कर 25.22 करोड़ टन (2015-16) तक पहुँच गया है। हाल के वर्षों में देश को कई बार सूखे जैसी दशाओं तथा प्राकृतिक आपदाओं की विपदा झेलनी पड़ी, परन्तु पूर्व तैयारी के कारण खाद्य उत्पादन पर इसका कोई विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिला। वर्ष 2015-16 के दौरान चावल का 10.33 करोड़ टन, गेहूँ का 9.40 करोड़ टन और मोटे अनाजों का 3.77 करोड़ टन उत्पादन हुआ। दालों का उत्पादन 1.70 करोड़ टन से अधिक आँका गया और तिलहनों ने लगभग 2.60 करोड़ टन का आँकड़ा हासिल कर लिया। कृषि जिंसों के उत्पादन के ये प्रभावशाली आँकड़े कृषि अनुसंधान एवं विकास के साथ कृषि विकास एवं किसान कल्याण की उन योजनाओं की कामयाबी की ओर भी संकेत करते हैं, जिनके माध्यम से किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिये तकनीकी सहायता, कृषि आदान, कृषि ऋण, बाजार सुविधा आदि उपलब्ध कराई गई। इन योजनाओं में हाल के वर्षों में प्रारम्भ की गई प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार और परम्परागत कृषि विकास योजना प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि इन योजनाओं के माध्यम से छोटे और सीमांत किसानों तक लाभ पहुँचाने का विशेष प्रयास किया गया, क्योंकि किसानों के इस वर्ग को देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा का सबसे प्रमुख अंशदाता माना जाता है। इनके दो हेक्टेयर से कम जोत आकार के खेत देश के कुल

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