Economy, asked by shoibansari571, 6 months ago

भारत में स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की दृष्टि से स्थापित सर्वोच्च संस्था है​

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Answered by tejaskulkarni26
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Explanation:

देश में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तो 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये यह मौलिक अधिकार बन गया। इसके अलावा शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का अंबार लगा है तथा ऐसे उपायों की तलाश लगातार जारी रहती है, जिनसे इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जा सकें। मानव संसाधन के विकास का मूल शिक्षा है जो देश के सामाजिक-आर्थिक तंत्र के संतुलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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Answered by Anonymous
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Answer:

संदर्भ

देश में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तो 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये यह मौलिक अधिकार बन गया। इसके अलावा शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का अंबार लगा है तथा ऐसे उपायों की तलाश लगातार जारी रहती है, जिनसे इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जा सकें। मानव संसाधन के विकास का मूल शिक्षा है जो देश के सामाजिक-आर्थिक तंत्र के संतुलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

समवर्ती सूची का विषय है शिक्षा

शिक्षा के क्षेत्र में आधारभूत, वित्तीय एवं प्रशासनिक उपायों के द्वारा राज्यों एवं केंद्र सरकार के बीच नई ज़िम्मेदारियों को बाँटने की आवश्यकता महसूस की गई। जहाँ एक ओर शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों की भूमिका एवं उनके उत्तरदायित्व में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ, वहीं केंद्र सरकार ने शिक्षा के राष्ट्रीय एवं एकीकृत स्वरूप को सुदृढ़ करने का भार भी स्वीकार किया। इसके अंतर्गत सभी स्तरों पर शिक्षकों की योग्यता एवं स्तर को बनाए रखना एवं देश की शैक्षिक ज़रूरतों का आकलन एवं रखरखाव शामिल है। 1976 से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व था, लेकिन 1976 में किये गए 42वें संविधान संशोधन द्वारा जिन पाँच विषयों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डाला गया, उनमें शिक्षा भी शामिल थी। गौरतलब है कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र और राज्य मिलकर काम करते हैं।

संस्थागत समस्या है एक बड़ा कारण

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के राज्यों में सर्वाधिक सरकारी कर्मचारियों की संख्या शिक्षा विभाग में ही देखने को मिलती है। इसमें भी शिक्षा के मोर्चे पर सामने तैनात रहने वाले (Frontline) अध्यापकों के अलावा हज़ारों अधिकारी और प्रशासक भी हैं जो हमारे शैक्षिक सेट-अप का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसके बावजूद भारत आज़ादी के 72 वर्षों बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में ठोस प्रयासों के बावजूद वांछित परिणाम हासिल नहीं कर पाया है और भारत का शिक्षा जगत अनेकानेक संस्थागत समस्याओं से प्रभावित है।

प्रमुख समस्याएँ

हमारे देश का शिक्षा क्षेत्र शिक्षकों की कमी से सर्वाधिक प्रभावित है। UGC के अनुसार, कुल स्वीकृत शिक्षण पदों में से 35% प्रोफेसर के पद, 46% एसोसिएट प्रोफेसर के पद और 26% सहायक प्रोफेसर के पद रिक्त हैं।

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