Social Sciences, asked by ankitkeshri182, 7 months ago

भारत में सार्वजनिक सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कोई तीन सुझाव लिखो​

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Answered by PayalBurnwal
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Answered by faisalfiroz02
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नीति आयोग द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में एक अभूतपूर्व बदलाव की सिफारिश की गई है। उसने ‘पीपीपी’ यानी पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप के तहत जिला स्तरीय सार्वजनिक अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को निजी संस्थानों के साथ संबद्ध करने का प्रस्ताव दिया है। गैर-संचारी रोगों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों की भूमिका बढ़ाने के उद्देश्य से एक मॉडल अनुबंध का प्रस्ताव नीति आयोग और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किया गया है। प्रस्तावित मॉडल के तहत जिला अस्पताल की इमारतों में निजी अस्पतालों को 30 वर्षों के लिए पट्टे पर जगह देने और अन्य व्यवस्था मुहैया कराने और देश के आठ बड़े महानगरों को छोड़कर अन्य शहरों में 50 से 100 बेड वाले अस्पताल बनाने के लिए जमीन प्रदान करने की बात कही गई है। निजी निवेशकों को आकर्षित करने के क्रम में आयोग द्वारा अस्पताल परिसर के 60,000 वर्ग फीट जमीन प्राइवेट संस्थानों को देने का प्रस्ताव भी किया गया है। शर्त है कि जिन जिला अस्पतालों में प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा मरीज इलाज के लिए आते हैं, केवल उन्हीं अस्पतालों में निजी व्यवस्था स्थापित की जाएगी। इस प्रस्ताव को लेकर आयोग की दलील है कि नई नीति के लागू हो जाने से हृदय संबंधी, कैंसर और श्वास रोगों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकेगा। सच है कि देश में गंभीर बीमारियों की वजह से होने वाली मौत में लगभग 35 फीसद भागीदारी इन्हीं तीन बीमारियों की है। आयोग की सिफारिश को रोग उन्मूलन की दृष्टि से देखे जाने पर स्पष्ट है कि सरकार लचर पड़ी चिकित्सा व्यवस्था को बल देना चाहती है। इससे इतर दूसरा और मजबूत पक्ष यह भी है कि क्या निजीकरण मात्र से आम जनमानस को अपेक्षित लाभ मिल पाएगा? सवाल यह भी है कि जब पूर्णत: सरकारी तंत्र की निगरानी में कैंसर, हृदय रोग और श्वास रोग आदि पर काबू नहीं पाया जा सका है तो क्या गारंटी है कि निजी संस्थानों से संबद्धता के बाद मरीजों को सुविधाजनक और सस्ता उपचार मिलना शुरू हो जाएगा?

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