Hindi, asked by trajveer328, 6 months ago

भारत में समाचार पत्र-पत्रिकाओं के विकास को समझाइए​

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Answered by rd285756
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पत्र-पत्रिकाएँ मानव समाज की दिशा-निर्देशिका मानी जाती हैं। समाज के भीतर घटती घटनाओं से लेकर परिवेश की समझ उत्पन्न करने का कार्य पत्रकारिता का प्रथम व महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य है। राजनीतिक-सामाजिक चिंतन की समझ पैदा करने के साथ विचार की सामर्थ्य पत्रकारिता के माध्यम से ही उत्पन्न होती है। पत्रकारिता ने युगों से अपने इस दायित्व का निर्वाह किया तथा दायित्व-निर्वहन की समस्त कसौटियों को पूर्ण करते हुए समय-समय पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की। यह अध्ययन करना अपने-आप में अत्यंत रोचक है कि पत्रकारिता की यह यात्रा कब और कैसे आरंभ हुई और किन पड़ावों से गुजरकर राष्ट्रीयता के मिशन से व्यावसायिकता तक की यात्रा को उसने संपन्न किया।

आशादी से पूर्व का युग राष्ट्रीयता औरराष्ट्रीय चेतना की अनुभूति के विकास का युग था। इस युग का मिशन और जीवनका उद्देश्य एक ही था : स्वाधीनता की चाह और प्राप्ति का प्रयास। इस प्रयास के तहत् ही हिंदीपत्र-पत्रिकाओं का आरंभ हुआ। इस संदर्भ में इस तथ्य को भी ध्यान में रखना होगा कि हिंदी क्षेत्रों के बाहर भी विशेषकर हिंदीतर भाषी क्षेत्रों में भाषाको राष्ट्रीय अस्मिता का वाहक मानकर सभी पत्रकारों ने हिंदी को ही अपनी ‘भाषा’ के रूप में चुना और हिंदी भाषा के पत्र-पत्रिकाओं के संवर्धन में अपना योगदान दिया।

भारतेंदु के आगमन से पूर्व ही पत्रकारिता का आरंभ हो चुका था। हिंदी भाषा का प्रथम समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ 30 मई, 1826 को कानपुर निवासी पं॰ युगल किशोर शुक्ल ने निकाला। सुखद आश्चर्य की बात यह थी कि यह पत्र बंगाल से निकला और बंगाल में ही हिंदी पत्रकारिता के बीज प्रस्पुफटित हुए। ‘उदन्त मार्तण्ड’ का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को जागृत करना तथा भारतीयों के हितों की रक्षा करना था। यह बात इसके मुख पृष्ठ पर छपी पंक्ति से ही ज्ञात होती है:

यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेतु जो आज तक किसी ने नहीं चलाया .....।

समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का मूल उद्देश्य सदैव जनता की जागृति और जनता तक विचारों का सही संप्रेषण करना रहा है। महात्मा गांधी की पंक्तियाँ हैं : समाचार पत्र का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना है। तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है।

समाचार-पत्र और पत्रिकाओं ने इन उद्देश्यों को अपनाते हुए आरंभ से ही भारतीयों के हित के लिए विचार को जागृत करने का कार्य किया। बंगाल से निकलने वाला ‘उदन्त मार्तण्ड’ जहाँ हिंदी भाषी शब्दावली का प्रयोग करके भाषा-निर्माण का प्रयास कर रहा था वहीं काशी से निकलने वाला प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘बनारस अखबार’ पूर्णतया उर्दू और फारसीनिष्ठ रहा। भारतेंदु युग से पूर्व ही हिंदी काप्रथम समाचार-पत्र (दैनिक) ‘समाचार सुधावर्षण’ और आगरा से ‘प्रजाहितैषी’ का प्रकाशन हो चुका था। अर्जुन तिवारी पत्रकारिता के विकास को निम्नलिखित कालखण्डों में बाँटते हैं:

1. उद्भव काल (उद्बोधन काल) - 1826-1884 ई॰

2. विकासकाल

(क) स्वातंत्रय पूर्व काल

(अ) जागरण काल - 1885-1919

(आ) क्रांति काल - 1920-1947

(ख) स्वातंत्रयोत्तर काल - नवनिर्माण काल - 1948-1974

3. वर्तमान काल (बहुउद्देशीय काल) 1975

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