भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए स्वामी विवेकानंद जी क्या उपाय सुझाया हैं
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आज शिक्षा की चर्चा सर्वत्र है | देश भर में किस प्रकार की शिक्षा पद्धति चल रही है इसकी जब चर्चा आती है तो सर्वदूर एक नाम आता है मैकाले शिक्षा पद्धति| जोकि 19वीं सदी में अंग्रेजों के समय यहाँ लागू की गई और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी देश में लागू रही | अंग्रेजों के समय से अब तक अनेक प्रयास भारतीय शिक्षा को लागू करने के भारत में हुए| भारतीय शिक्षा का बीड़ा उठाने वाले दार्श
social-worker-swami-vivekananda-images-photo-wallpapers-888x742निकों में स्वामी विवेकानंद का नाम प्रमुख है| उन्होंने भारत में पाश्चत्य शिक्षा प्रणाली का विरोध किया और भारत संस्कृति के अनुरूप शिक्षा अपनाने का समर्थन किया| उन्होंने कहा “Education Should be Routed to culture & target to progress” उन्होंने पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए उसकी तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिसे अपने गधे को घोडा बनाने के लिए खूब पिटने के सम्मति दी गई थी और व्यक्ति ने अपने गधे को घोडा बनाने की इच्छा से इतना पीटा की वह बेचारा मर ही गया |
स्वामी विवेकानंद जी कहते है की “इस तरह लड़के को ठोक –पीटकर शिक्षित बनाने की जो प्रणाली है, उसका अंत कर देना चाहिए | माता-पिता के अनुचित दबाव के कारण हमारे बालकों के विकास का स्वतंत्र अवसर प्राप्त नहीं होता| प्रत्येक में ऐसी असंख्य प्रवृतियाँ रहा करती है जिनके विकास के लिए समुचित क्षेत्र की आवश्यकता होती है | सुधार के लिए जबरदस्ती उद्योग करने का परिणाम सैदेव उल्टा ही होता है यदि किसी को सिंह न बनने देंगे तो वह स्यार ही बनेगा |”
स्वामी विवेकानंद जी का मानना है कि शिक्षा की व्याख्या शक्ति के विकास के रूप में की जा सकती है| बालक-बालिकाओं के मस्तिष्क में जानकारी को ठूसने के प्रयास को शिक्षा नहीं कहना चाहिए |
शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी ने कहा, “Education is Manifestation of perfection already in the man.” शिक्षा मनुष्य में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है | ज्ञान मनुष्य में निहित सिद्धांत है बाहर से कोई ज्ञान नहीं आता| समस्त लौकिक व आध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य के मन में है| वह आवरण द्वारा ढका रहता है| जब यह आवरण धीरे धीरे हटता है तो व्यक्ति कुछ न कुछ सिखाता जाता है| जैसे-जैसे प्रक्रिया बढ़ती है वैसे वैसे ज्ञान वृद्धि बढ़ती है |
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