भारत माता कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
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Answer:
भारत माता
ग्रामवासिनी!
खेतों में फैला है श्यामल,
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी!
दैन्य जङित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी!
प्रसंग –
प्रस्तुत अवतरण सुमित्रानन्दन पंत की ’भारत माता’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने भारत की दुर्दशा के साथ प्राकृतिक परिवेश का भी चित्रण किया है।
व्याख्या –
कवि पन्त कहते है कि भारत माता गाँवों में निवास करती है, अर्थात् सच्चे अर्थों में भारत गाँवों का देश है तथा गाँवों में ही भारत माता के दर्शन हो पाते हैं। यहाँ पर खेतों में हरियाली फैली रहती है और उनमें अनाज लहराता रहता है, परन्तु इसका हरा आंचल मैला-सा अर्थात् गन्दगी से व्याप्त रहता है, अर्थात् यहाँ गाँवों में गन्दगी रहती हैं।
गंगा और यमुना में भारत माता के आँसुओं का जल है, भारतीयों की दरिद्रता-दीनता एवं श्रमनिष्ठा का जल बहता है। भारतीयों की दीनता को देखकर मानो भारत माता करुणा के आँसू बहा रही है। वे आँसू ही गंगा-यमुना आदि नदियों की जलधारा के रूप में प्रकाहित हो रहे हैं। भारत माता मिट्टी की प्रतिभा अर्थात् दरिद्रता की मूर्ति है तथा सदा उदास एवं दुखिया दिखाई देती है।
कवि वर्णन करता है कि भारतमाता की दृष्टि दीनता से ग्रस्त, निराशा से झुकी हुई रहती है, इसके अधरों पर मूक रोदन की व्यथा दिखाई देती है। भारत माता का मन युगों से बाहरी लोगों के आक्रमण, शोषण, अज्ञान आदि के कारण विषादग्रस्त रहता है। इस कारण वह अपने ही घर में प्रवासिनी के समान उपेक्षित, शासकों की कृपा पर निर्भर और परमुखापेक्षी रहती है। यह भारत माता का दुर्भाग्य ही है।
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उत्तर : भारत माता !
ग्रामवासिनी खेतों में फैला है श्यामल ,
धूल-भरा मैला-सा आँचल ,
गंगा-यमना आँसू-जल ,
मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी
दैन्य जङित अपलक नत चितवन, अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन,वह अपने घर में
प्रवासिनी!
प्रसंग -
प्रस्तुत अवतरण सुमित्रानन्दन पंत जी की रचना 'भारत माता' कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने देश प्रेम की अभिव्यक्ति की है। तथा भारत की दुर्दशा के साथ साथ प्रकृति का अपार सौंदर्य का भी चित्रण किया है।
व्याख्या :
कवि पन्त जी कहते है कि भारत माता गाँवों में निवास करती है, अर्थात् सच्चे अर्थों में भारत गाँवों का देश है तथा भारत माता के दर्शन गाँवों में ही हो पाते हैं। यहाँ पर खेतों में हरियाली ही हरिययाली फैली रहती है और उनमें अनाज लहरता रहता है, परन्तु इसका हरा आंचल मानो मैला-सा अर्थात् गन्दगी से व्याप्त रहता है, अर्थात् यहाँ गाँवों में गन्दगी भी रहती हैं।
जिस तरह से गंगा और यमुना में भारत माता के आँसुओं का जल है, भारतीयों की दरिद्रता - दीनता एवं श्रमनिष्ठा का जल बहता रहता है। भारतीयों की दीनता को देखकर मानो भारत माता करुणा के आँसू-जल बह रही हो। वे आँसू ही गंगा-यमुना आदि नदियों की जलधारा के रूप में प्रकाहित हो रही हैं। भारत माता मिट्टी की प्रतिभा अर्थात् दरिद्रता की मूर्ति है तथा सदा उदास एवं दुःखी की तरह दिखाई देती है।
अत: कवि वर्णन करता है कि भारतमाता की दृष्टि दीनता से ग्रस्त, निराशा से झुकी हुई रहती है, मानो इसके अंधरो पर मूक रोदन की व्यथा दिखाई देती है। भारत माता का मन युगों से बाहरी लोगों के आक्रमण, शोषण, अज्ञान आदि के कारण विषादग्रस्त रहता है। इस कारण वह अपने ही घर में प्रवासिनी के समान उपेक्षित, शासकों की कृपा पर निर्भर और परमुखापेक्षी रहती है।
यह भारत माता का यह दुर्भाग्य ही तो है।
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