भारत में दरिद्रता कब बढ़ गई थी
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- भारत भारती, मैथिलीशरण गुप्तजी की प्रसिद्ध काव्यकृति है जो १९१२-१३ में लिखी गई थी। यह स्वदेश-प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है। भारतवर्ष के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति "भारत-भारती" निश्चित रूप से किसी शोध कार्य से कम नहीं है। गुप्तजी की सृजनता की दक्षता का परिचय देनेवाली यह पुस्तक कई सामाजिक आयामों पर विचार करने को विवश करती है। भारतीय साहित्य में भारत-भारती सांस्कृतिक नवजागरण का ऐतिहासिक दस्तावेज है
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[tex]ब्रिटिश शासन के समय, भारतीय उत्पाद का वह हिस्सा जो जनता के उपभोग के लिये उपलब्ध नहीं था तथा राजनीतिक कारणों से जिसका प्रवाह इंग्लैण्ड की ओर हो रहा था, जिसके बदले में भारत को कुछ नहीं प्राप्त होता था, उसे आर्थिक निकास या धन-निष्कासन (Drain of Wealth) की संज्ञा दी गयी। धन की निकासी की अवधारणा वाणिज्यवादी सोच के क्रम में विकसित हुई। धन-निष्कासन के सिद्धान्त पर उस समय के अनेक आर्थिक इतिहासकारों ने अपने मत व्यक्त किए। इनमें दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक “पावर्टी ऐन्ड अनब्रिटिश रूल इन इन्डिया” (Poverty and Un-British Rule in India) में सर्वप्रथम आर्थिक निकास की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होने धन-निष्कासन
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