भारत में उद्योगों के स्थानीयकरण के कारणों को स्पष्ट कीजिए।(कोई पांच)
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कच्चा माल- उद्योग सामान्यतः वहीं स्थापित किये जाते हैं जहाँ कच्चे माल की उपलब्धता होती है। जिन उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का भार, कच्चे माल की तुलना में कम होता है, उन उद्योगों को कच्चे माल के निकट ही स्थापित करना होता है। जैसे- चीनी उद्योग। गन्ना भारी कच्चा माल है जिसे अधिक दूरी तक ले जाने से परिवहन की लागत बहुत बढ़ जाती है और चीनी के उत्पादन मूल्य में वृद्धि हो जाती है।
लोहा और इस्पात उद्योग में उपयोग में आने वाले लौह-अयस्क और कोयला दोनों ही वज़न ह्यस और लगभग समान भार के होते हैं। अतः अनुकूलनतम स्थिति कच्चा माल व स्रोतों के मध्य होगी जैसे जमशेदपुर।
शक्ति (ऊर्जा) - उद्योगों में मशीन चलाने के लिये शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के प्रमुख स्रोत- कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा है। लौह-इस्पात उद्योग कोयले पर निर्भर करता है, इसलिये यह उद्योग खानों के आस-पास स्थापित किया जाता है। छत्तीसगढ़ का कोरबा तथा उत्तर प्रदेश का रेनूकूट एल्युमीनियम उद्योग विद्युत शक्ति की उपलब्धता के कारण ही स्थापित हुए हैं।
श्रम- स्वचालित मशीनों तथा कंप्यूटर युग में भी मानव श्रम के महत्त्व को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। अतः सस्ते व कुशल श्रम की उपलब्धता औद्योगिक विकास का मुख्य कारक है।
जैसे- फिरोजाबाद में शीशा उद्योग, लुधियाना में होजरी तथा जालंधर व मेरठ में खेलों का सामान बनाने का उद्योग मुख्यतः सस्ते कुशल श्रम पर ही निर्भर है।
परिवहन एवं संचार- कच्चे माल को उद्योग केंद्र तक लाने तथा निर्मित माल की खपत के क्षेत्रों तक ले जाने के लिये सस्ते एवं कुशल यातायात की प्रचुर मात्रा में होना अनिवार्य है। मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों में औद्योगिक विकास मुख्यतः यातायात के साधनों के कारण ही हुआ है।
बाज़ार- औद्योगिक विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका तैयार माल की खपत के लिये बाज़ार की है।