भारत में वह विभिन्न भाव (अर्थ) कौन से हैं जिनमें धर्मनिरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षतावाद को समझा जाता है?
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भारत में वह विभिन्न भाव (अर्थ) जिनमें धर्मनिरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षतावाद को समझा जाता है
भारत पूरे विश्व के देशों में अकेला ऐसा देश है जहाँ चारों धर्मो को मानने वाले नागरिक पाए जाते है। भारत में हिन्दू , मुसलमान , सिख , ईसाई चारो धर्मो अनुयायी सामान रूप से पाए जाते है।
भारत में वह विभिन्न भाव (अर्थ) कौन से हैं जिनमें धर्मनिरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षतावाद को समझने के लिए धर्म की निरपेक्षता पर विचार करते हुए प्रख्यात इतिहासकार विपन चन्द्रा ने लिखा कि ‘‘दूसरी जगहों की तरह भारत मे भी धर्म निरपेक्षता की चार तरह से व्याख्या की गई है।"
१- धर्म को राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। धर्म राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा तथा सामाजिक जीवन और संस्कृति के बड़े क्षेत्रों से अलग रहना चाहिए। धर्म व्यक्ति का निजी या व्यक्तिगत मामला समझा जाना चाहिए।
२-किसी बहुधर्म समाज में धर्म निरपेक्षता का यह भी मतलब है कि शासन सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहे या जैसा कि बहुत से धार्मिक व्यक्ति कहते हैं निरीश्वरवाद सहित सभी धर्मों को बराबर सामान दें।
३-धर्मनिरपेक्षता का आगे मतलब है कि शासन सभी नागरिकों को बराबर समझे और उनके धर्म के आधार पर उनके साथ भेदभाव न करें।
४- भारत के संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की और विशेषता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता उपनिवेशवाद के खिलाफ सभी भारतियों को इक्ट्ठा करने और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के हिस्से की तरह एक विचारधारा के रूप में आई।
भारत वर्ष को धर्म निरपेक्ष बने रहने के लिए बहुत अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये विभिन्न चुनौतिओं का विवरण निम्न लिखित है।-
1-राजनीति के मामलों में और अन्य गैर-धार्मिक मामलों से धर्म को दूर रखा जाए और सरकारें-प्रशासन धर्म के आधार पर किसी से किसी प्रकार का भेदभाव न करे।
2- राज्य में सभी धर्मों के लोगों को बिना किसी पक्षपात के विकास के समान अवसर मिलें। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी के धर्म का विरोध करना नही है, बल्कि सबको अपने धार्मिक विश्वासों व मान्यताओं को पूरी आजादी से निभाने की छूट है।
3-धर्मनिरपेक्षता में धर्म व्यक्ति का नितान्त निजी मामला है, जिसे राजनीति या सार्वजनिक जीवन में दखल नहीं देना चाहिए। इसी तरह राज्य भी धर्म के मामले में तब तक दखल न दे जब तक कि विभिन्न धर्मों के आपस में या राज्य की मूल धारणा से नहीं टकराते।
4-धर्मनिरपेक्ष राज्य में उस व्यक्ति का भी सम्मान रहता है जो किसी भी धर्म को नहीं मानता। धर्मनिरपेक्षता पर विचार करते हुए डॉक्टर सर्वपल्ली राधकृष्णन् ने कहा है कि ‘‘जब भारतीयों के धर्मनिरपेक्षता ग्रहण करने की बात कही जाती है तो इसका यह अर्थ नहीं कि वे अधार्मिकता या भौतिकवाद का समर्थन करते हैं। वे सब धर्मों के प्रति यह सम्मान रखते हैं और सब पैगम्बरों का आदर करते हैं।
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