भारत महिमा कविता का सरल अर्थ बताव
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यह कविता "भारत महिमा" जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है। इसमें कवि कहते हैं कि हम भारतीयों ने पूरे विश्व में ग्यान का प्रसार किया है। ... कवि यह कहना चाहता है कि हमे सदेव अपने देश और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। जब भी आवश्यकता पड़े, अपने देश के लिए अपना सर्वस्व निशावर कर देने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
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भारत महिमा कविता का सरल अर्थ बतायें।
'भारत महिमा'कविता कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई एक कविता है, जिसके माध्यम से उन्होंने भारत देश की महिमा का गुणगान किया है। कवि कहते हैं कि हिमालय पर्वत भारत के आंगन के समान है, जहां प्रतिदिन सूरज की किरणें अपनी छटा बिखेरते हैं। ऐसा लगता है कि वह इस भारत भूमि का अभिनंदन कर रही हों। भारत में ही सबसे पहले ज्ञान का उदय हुआ यानी भारतवासी नहीं भारतवासियों नहीं पूरे विश्व में सबसे पहले ज्ञान एवं चेतना का प्रचार किया।
विद्या की देवी सरस्वती ने अपने कमल के समान कोमल हाथों से वीणा उठाई और ज्ञान के सात स्वर वातावरण में गुंजायमान होने लगे। भारत ही एकमात्र देश है जहां जिसने विश्व में कभी भी हथियारों के बल पर दूसरे देशों पर नहीं आक्रमण किया और ना ही उन्हें जीतने का प्रयास किया। भारत ने हमेशा अहिंसा और धर्म का प्रचार किया हैष यहां पर गौतम गौतम बुद्ध महावीर जैसे धर्म पुरुष हुए हैं जिन्होंने राजसी सुख त्याग कर सन्यासी जीवन धारण किया और लोगों में ज्ञान चेतना का प्रसार किया। भारत ने ही पूरे विश्व में धर्म का प्रचार प्रसार किया।
भारत के लोग सदैव चरित्रवान रहे हैं। जहां हमारे पूर्वज वीर रहे हैं, वही दानी और विनम्र भी रहे हैं। उन्होंने कभी अपनी शक्ति पर अहंकार नहीं किया। हमारे पूर्वज संपत्ति और धन का संग्रह करते थे, तो दान और पुण्य कार्य भी करते थे। कवि कहते हैं कि जब तक जिए। हम अपने देश के लिए जिए हमें अपने देश की सभ्यता और संस्कृति पर अभिमान होना चाहिए।
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चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न हदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न। हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव।वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान। जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमार