Political Science, asked by mahesh96311, 11 months ago

भारत ने किस नीति का सदैव विरोध किया है ?

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Answered by aryan12326
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भारत ने एटमी हथियारों का इस्तेमाल पहले न करने की जो नीति बनाई, ये उसके सामरिक रणनीतिकारों की बरसों की समझ और अनुभव का नतीजा था, जब उन्होंने कई दशक तक विश्व की एटमी ताक़तों के बर्ताव का अध्ययन किया और तब जाकर ये तय किया कि भारत की एटमी नीति के लिए इन देशों की रणनीति के क्या मायने हैं.

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iStock/Getty Images

भारत ने किसी भी देश पर पहले परमाणु हमला करने न करने की नीति वर्ष 2003 में अपनायी थी. लेकिन, इस नीति का शुरू से ही विरोध होने लगा था और विरोध करने वालों के अपने तर्क थे. ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की नीति के विरोधियों का ये आकलन था कि भारत की नाभिकीय नीति केवल पलटवार की रणनीति पर निर्भर थी. इस नीति के चलते भारत पहले दुश्मन के अपने ऊपर एटमी हमला करने का इंतज़ार करेगा और ऐसा होने के बाद वो दुश्मन पर परमाणु हमला करेगा. इस नीति से भारत की सामरिक नीति में एक ढीलापन दिखता है. ये नीति एक तरह के राजनीतिक आदर्शवाद से प्रेरित है. और भारत ने विश्व स्तर पर ख़ुद की एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति संपन्न देश की छवि को बनाने के लिए इस नीति को अपनाया है.

हालांकि, ये बात सच से बिल्कुल ही परे है. भारत ने एटमी हथियारों का पहले प्रयोग न करने की जो नीति बनाई, ये इसके नीति नियंताओं के कई दशकों के अनुभवों का नतीजा है. भारत के रणनीतिकारों ने दुनिया के परमाणु शक्ति संपन्न देशों की नीतियों का अध्ययन किया और इन नीतियों के असर को जांचा परखा. तब जाकर भारत ने ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की परमाणु नीति को अपनाया. ये आदर्शवाद से प्रेरित नीति नहीं थी, बल्कि गहरे यथार्थवाद का परिचायक है. भारत के नीति निर्माताओं को इस बात का अच्छे से एहसास था कि एटमी हथियारों का किसी एटमी ताक़त वाले देश की सामरिक नीति में एक सीमित ही उपयोग है. ख़ास तौर से भारत जैसे देश के लिए तो और भी.

भारत की पहली नाभिकीय नीति बनाने वाले कई दिग्गजों के देहांत के बाद, आज की तारीख़ में भारत की ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की नीति के रक्षक नौकरशाही का ढांचा मात्र रह गया है. जो इस नीति को दी जा रही चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसीलिए अब हमारे लिए सही यही है कि हम इस नीति की नए सिरे से समीक्षा करें और ये समझने की कोशिश करें कि उस दौर में भारत के नीति निर्माताओं ने क्यों परमाणु हथियारों के संदर्भ में ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की नीति अपनायी थी. आज ये समझना बेहद ज़रूरी हो गया है.

अगर आज भारत की ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की सामरिक नीति को कोई ख़तरा है, तो ये इसके सैद्धांतिक विरोध का है. न कि, ये भारत की रणनीतिक ज़रूरतों की समीक्षा से उपजा नतीजा है.

यहां हमारे कहने का ये मतलब नहीं है कि भारत के मौजूदा रणनीतिकारों या पहले के नीति निर्माताओं ने परमाणु हथियार पहले इस्तेमाल न करने की नीति पर पुनर्विचार किया है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आज ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की नाभिकीय नीति की अहमियत ख़त्म हो गई है. क्योंकि आज भी भारत की एटमी नीति की बुनियाद परमाणु अस्त्रों के पहले इस्तेमाल न करने की नीति ही है. अगर आज भारत की ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की सामरिक नीति को कोई ख़तरा है, तो ये इसके सैद्धांतिक विरोध का है. न कि, ये भारत की रणनीतिक ज़रूरतों की समीक्षा से उपजा नतीजा है.

किसी भी परमाणु शस्त्र संपन्न देश के लिए दुश्मन को एटमी ताक़त से धमकाना ही असली सुरक्षा है. दुश्मन के दिल में ये बात बैठा देना कि अगर वो परमाणु हमले का जोख़िम उठाता है, तो उसे इसकी सज़ा जवाबी एटमी हमले से ही दी जाएगी.

परमाणु हथियारों को लेकर ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की भारतीय नीति, इसी सामरिक सोच का नतीजा थी. इसका एक पहलू ये भी था कि भारत परमाणु हथियारों का बड़ा ज़ख़ीरा नहीं जमा करेगा, बल्कि सीमित मात्रा में ही एटमी अस्त्र बनाएगा. अगर, परमाणु हथियार बनाने का प्राथमिक लक्ष्य-बल्कि ये कहें कि एकमात्र मक़सद ये था कि दुश्मन देशों को भारत पर परमाणु हमला करने से रोका जाए, तो ऐसे में भारत के लिए यही तार्किक था कि वो दुश्मन को परमाणु हमले के पलटवार का डर दिखाए. किसी भी परमाणु शस्त्र संपन्न देश के लिए दुश्मन को एटमी ताक़त से धमकाना ही असली सुरक्षा है. दुश्मन के दिल में ये बात बैठा देना कि अगर वो परमाणु हमले का जोख़िम उठाता है, तो उसे इसकी सज़ा जवाबी एटमी हमले से ही दी जाएगी. पलटवार का मतलब ही यही है कि किसी क्रिया की प्रतिक्रिया दी जाए. दुश्मनों को अपनी एटमी ताक़त का डर दिखाकर उन्हें ऐसा हमला करने से रोकने का मतलब यही होता है कि पहले किसी पर परमाणु हमला न किया जाए. इसीलिए भारत ने परमाणु हथियारों का पहले प्रयोग न करने की नीति यानी ‘नो फ़र्स्ट यूज़’ की पॉलिसी बनाई. इस नीति के और भी फ़ायदे हैं. इससे परमाणु हथियारों पर पूरी तरह से राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हुआ. इससे एटमी हथियारों का कमांड और कंट्रोल का भारतीय सिस्टम उतना तनावपूर्ण नहीं है, जैसा किसी देश के एटमी अस्त्र सेनाओं के हाथ में होने से होता है. साथ ही भारतीय परमाणु हथियारों की सुरक्षा भी बेहतर है.

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