भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण-विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल-भर का है।
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है!
निखिल विश्व की जन्मभूमि वंदन को नमन करूँ
किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ
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Poem of desh bhakti jok..
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भारत नहीं स्थान का वाचक गुण-विशेष नर का है,
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल-भर का है।
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है!
निखिल विश्व की जन्मभूमि वंदन को नमन करूँ
किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ।
संदर्भ : यह पंक्तियां ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा रचित ‘कविता किसको नमन करूं मैं भारत’ से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने भारत देश की महिमा का गुणगान किया है।
भावार्थ : कवि कहते हैं कि भारत की संपूर्ण धरती गुणों से भरी हुई है। यहाँ के प्रत्येक मनुष्य में प्रेम पाया जाता है। यहाँ का गुणगान स्थान से नहीं बल्कि मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम से होता है। यहाँ कण-कण में प्रेम एवं एकता के स्वर विद्यमान हैं। भारत देश का हर हिस्सा जीवित प्रकाशमान दिखाई देता है। भारत देश का ये गुण खाली भारत के लिए गर्व का विषय नही बल्कि पूरी पृथ्वी के लिए गर्व का विषय है।
हमारे भारत देश में एकता और अखंडता मूल स्वभाव है। यहाँ पर विभिन्न धर्म, जाति, सम्प्रदायों और भाषायी विविधता वाले लोग मिलजुल कर रहते हैं। भारत के चप्पे चप्पे पर प्रेम बिखरा पड़ा है। भारत के किसी भी हिस्से में चले जाओ, वहाँ पर भारत की गाथा को व्यक्त करता देश का हर कोना-कोना मिलेगा। ऐसी संपूर्ण विश्व के मार्ग दिखाने वाली भारतभूमि को कवि नमन करते हैं।