भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है, एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है।
Arth sapsth kijiye.
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भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है, एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है। जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है, देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है।।
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भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण-विशेष नर का है एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल-भर का है। जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है, देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है! निखिल विश्व की जन्मभूमि वंदन को नमन करूँ
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