Hindi, asked by DEVILpro72, 7 months ago

भारत और चीन की सभ्यता कैसी है ​

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Answered by rdas58315
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आज से कई हजार साल पहले एशिया महाद्वीप में एक सभ्यता का जन्म हुआ था, जो चीन सभ्यता थी। चीन की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता ह्वांगहो नदी घाटी से लेकर यांग्त्सीक्यांग नदी घाटी तक फैली है। ह्वांगहो नदी में प्रत्येक वर्ष बाढ आने के कारण इसे चीन का शोक भी कहा जाता है।

चीन की सभ्यता विश्व की पुरातनतम सभ्यताओं में से एक है। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर चीन में मानव बसाव लगभग साढे बाईस लाख (22.5 लाख) साल पुराना है। ह्वांग-हो नदी की घाटी में प्राचीन चीन की सभ्यता का विकास हुआ। चीन वासियों ने भूकंप का पता लगाने वाले यंत्र सीस्मोग्राफ का आविष्कार किया था। राजा को वांग कहा जाता था।

 

चीन की सभ्यता की विशेषताएं निम्नलिखित हैं

चीन की राजनीतिक विशेषता

चीन की राजनैतिक एवं शासन व्यवस्था की बात करें तो वहाँ का सर्वोच्च व्यक्ति राजा होता था। चीन का राजा ही वहाँ के शासन एवं धर्म का प्रधान होता था। वह अपने राज्य का प्रधान सेनापति एवं सर्वोच्च व्यक्ति होता था। राजा की सहायता के लिये की प्रकार के मंत्रियों का गठन किया जाता था, और राजा अपने शासनकाल में इन मंत्रियों की सहायता लेता था। राजा की सहायता के लिये एक मंत्रिपरिषद का भी गठन किया जाता था। इस मंत्रिपरिषद में चार सदस्य होते थे।

चीन का सामाजिक जीवन

चीन का तत्कालीन समाज कई वर्गों में बंटा हुआ था, जिसमें शासक वर्ग, बुद्धिजीवी, साहित्यकार, व्यापारी, कारीगर, किसान एवं दास। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार होती थी, और उस समय संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी। पिता अपने बेटों और पत्नियों को बेच सकता था। परिवार का मुखिया पिता होता था और परिवार के लोग आपस में विवाह नहीं करते थे। प्रारंभ में चीन में स्त्रियों की दशा अच्छी थी, परंतु बाद में स्त्रियों की दशा दयनीय हो गयी।

चीन की सभ्यता में शिक्षा का महत्त्व

कोई भी व्यक्ति शिक्षा को प्राप्त करके उच्च स्थान प्राप्त कर सकता था। परंतु उस समय शिक्षा बहुत ही महंगी थी, अतः कुछ वर्ग के लोग ही शिक्षा ग्रहण कर सकते थे।

चीन की सभ्यता में रीति-रिवाज

चीन की सभ्यता में कई प्रकार के रीति रिवाज एवं परंपराएं थी – पर्दा प्रथा एवं दास प्रथा प्रचलित थी।

चीन के लोगों में आभूषण एवं परिधानों के प्रति लगाव था। जूट से बने हुए परिधानों को पहनते थे और बाद में इन्होंने सूती वस्त्र भी पहनना प्रारंभ कर दिया था। स्त्रियां परिधानों के अलावा फूलों का प्रयोग करती थी।

चीन का आर्थिक जीवन

चीन के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। यहां के लोग चावल, गेहूँ, बाजरा, सोयाबीन, चाय की खेती करते थे। कृषि कार्य के अलावा चीन के लोग पशुपालन का कार्य भी करते थे। पशुओं में भेङ पालन व सूअर पालन का कार्य किया जाता था।

चीन का व्यापार एवं उद्योग

चीन में सबसे ज्यादा विकसित रेशम का उद्योग था। व्यापार जल व थल दोनों मार्गों से होता था। चीन का व्यापार मिस्र, मेसोपोटामिया, ईरान, भारत और रोमन से होता था। चीन से सबसे ज्यादा व्यापार रेशम का होता था। रेशम के अलावा चीनी मिट्टी के बर्तन, कागज, लकङी, सोने-चांदी की हाथ से बनी वस्तुओं का निर्यात किया जाता था। चीन के लोग सोने तथा चाँदी को बाहर से आयात करते थे। चीन के लोग कागज का निर्माण भी करते थे।

ऐसा माना जाता है, कि 5 वीं शताब्दी में चीन में सोने व चांदी के सिक्कों का प्रयोग किया जाता था। परंतु कागज के आविष्कार के बाद कागजी मुद्रा का भी प्रयोग किया जाने लगा था। चीन में बैंकिंग प्रणाली का प्रचलन भी था। बैंगिक प्रणाली की शुरुआत भी चीन से ही हुई थी।

चीन के धार्मिक जीवन का इतिहास

प्रारंभ में चीन के लोग अंधविश्वास और जादू टोने से ग्रसित थे। तथा प्राकृतिक दैवीय शक्तियों के उपासक थे। परंतु चीन में धर्म का कोई विशेष महत्त्व नहीं था। चीन में कोई पुरोहित भी नहीं हुआ करते थे। उस समय के लोग जिसकी पूजा करते थे, उसे शंगति कहा जाता था, जिसका अर्थ होता था, स्वर्ग का देवता। राजा को शंगति का पुत्र माना जाता था।

कला का विकास

तत्कालीन चीनी समाज के लोग मकान को बनाने में लकङी, चूना एवं पत्थर का प्रयोग करते थे।

चीन के इतिहास में सर्वप्रथम जिस स्मारक का नाम आता है, वह चीन की दीवार । चीन की दीवार विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। इस दीवार का निर्माण हूणों के आक्रमण से बचने के लिये किया जाता था। इस दीवार का निर्माण चीन के सम्राट शी ह्वांग टी ने करवाया था।

 

चीन की सभ्यता के लोगों ने चीन की दीवार के अलावा भव्य राजमहलों, बौद्ध धर्म के मंदिरों तथा विहारों का निर्माण करवाया। चीन में बने हुये पैगोडा मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं।चीन की चित्रकला काफी उन्नत तथा अद्वितीय थी। खुदाई में प्राप्त हुये बर्तनों एवं मंदिरों की दीवारों पर चित्रकला के काफी सुन्दर नमूने प्राप्त हुये हैं। चित्रकला के साथ – साथ मूर्तिकला में भी चीनीवासी अग्रणी थे। मूर्तिकला को उन्होंने काफी विकसित किया।

 

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