भारत और शीत युद्ध पर निबंध लिखिए
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जिस प्रकार स्टालिन को शीत युद्ध के जनक के रूप में याद किया जाता है । उसी प्रकार विश्व गोर्वाच्योव को शीत युद्ध का अंत करने वाले नेता के रूप में याद करता है । उन्होंने विश्व में शांति स्थापित करने के लिए परमाणुविहीन, हिंसामुक्त, समस्यारहित विश्व की एक नई दृष्टि दी । उन्होंने दिसंबर, 1987 में आई॰एन॰एफ॰ संधि पर हस्ताक्षर किए
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द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व में दो महाशक्तियां रह गयीं और इन दो महाशक्तियों के आपसी सम्बन्धों को अभिव्यक्त करने वाला सबसे अधिक उपयुक्त शब्द है-शीत-युद्ध (Cold War) । द्वितीय विश्व-युद्ध से पूर्व यद्यपि अमरीका और सोवियत संघ में बुनियादी मतभेद थे फिर भी युद्ध के दौरान उनमें मित्रतापूर्ण सम्बन्ध दिखायी पड़ते हैं ।
द्वितीय विश्व-युद्ध की समाप्ति के पश्चात् सोवियत संघ-अमरीकी सम्बन्धों में कटुता तनाव वैमनस्य और मनोमालिन्य में अनवरत वृद्धि देखी गयी । दोनों महाशक्तियों में राजनीतिक प्रचार का खल संग्राम छिड़ गया और दोनों एक-दूसरे का विरोध आलोचना और सर्वत्र अपना प्रसार करने में लग गये ।
सोवियत संघ-अमरीकी कटुतापूर्ण सम्बन्धों ने सपूर्ण विश्व को दो विरोधी गुटों में विभाजित कर दिया । अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर दोनों ही गुट एक-दूसरे के विरुद्ध अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने का प्रयास करने लगे ।
वे एक-दूसरे को कूटनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सम्भव हो तो सैनिक मोर्चे पर भी पराजित करने में संलग्न हो गये और समूचे विश्व में एक प्रकार का भय अविश्वास और तनाव का वातावरण बन गया जिससे विश्व में एक बार पुन: संघर्षपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गयी ।
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एक नये युग का आविर्भाव हुआ जिसे ‘सशस्त्र शान्ति का युग’ कहा जा सकता है । द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच प्रलयंकर आणविक आयुधों से सम्पन्न इन दोनों भीमाकार दानवों (शक्तियों) के संघर्ष का अखाड़ा बन गया ।
शीत-युद्ध द्वितीय महायुद्ध के उपरान्त की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण विकास है, जिसकी व्याख्या दो प्रकार से की जा सकती हैं-प्रथम तो यह कि शीत-युद्ध एक वैचारिक संघर्ष था जिसमें दो विरोधी जीवन पद्धतियां- उदारवादी लोकतन्त्र तथा सर्वाधिकारवादी साम्यवाद-सर्वोच्चता प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रही थीं ।
इस दृष्टि से यह दो वैचारिक प्रणालियों का सैद्धान्तिक संघर्ष है । दूसरी ओर यथार्थवादी सिद्धान्त के अनुसार (जिसके प्रमुख प्रवक्ता प्रो. हेन्स जे. मॉरगेन्थाऊ हैं) शीत-युद्ध पुरानी शक्ति-सन्तुलन राजनीति का नवीनीकरण है, जिसमें बदले अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक परिवेश में उदित हुई दो महाशक्तियां-अमरीका और सोवियत संघ-विश्व के अधिकांश राज्यों को अपने प्रभाव-क्षेत्र में लाने के लिए निरन्तर संघर्ष कर रही थीं ।
Essay # 2. शीत-युद्ध : अर्थ (Cold War : Meaning):
‘शीत-युद्ध’ शब्द से सोवियत संघ-अमरीकी शत्रुतापूर्ण एवं तनावपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की अभिव्यक्ति होती है जो कि द्वितीय महायुद्धोत्तर विश्व राजनीति की वास्तविकता है । इन शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों को गर्म युद्ध (Hot War) में परिवर्तित किये बिना इस शीत-युद्ध में वैचारिक घृणा (Ideological Hatred), राजनीतिक अविश्वास (Political Distrust), कूटनीतिक जोड़-तोड़ (Diplomatic Manoeuvering), सैनिक प्रतिस्पर्द्धा (Military Competition), जासूसी (Espionage), मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological War-Fare), और कटुतापूर्ण सम्बन्ध देखे गये ।
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‘शीत-युद्ध’ शब्द बन्ध का सर्वप्रथम प्रयोग 16 अप्रैल, 1947 को बर्नार्ड एम.बरूच ने दक्षिणी कैरोलिन विधानमण्डल में भाषण देते हुए किया । उन्हीं के शब्दों में, “We are today in the midst of a cold war. Our enemies are to be found abroad and at home.”
शीत-युद्ध ‘युद्ध’ न होते हुए भी युद्ध की सी परिस्थितियों को बनाये रखने की कला थी जिसमें प्रत्येक विषय पर विश्व-शान्ति के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि अपने संकीर्ण स्वार्थों को ध्यान में रखकर विचार और कार्य किया जाता था ।
शीत-युद्ध सोवियत संघ-अमरीकी आपसी सम्बन्धों की वह स्थिति थी जिसमें दोनों पक्ष शान्तिपूर्ण राजनयिक सम्बन्ध रखते हुए भी परस्पर शत्रुभाव रखते थे तथा शस्त्र-युद्ध के अतिरिक्त अन्य सभी उपायों से एक-दूसरे की स्थिति और शक्ति को निरन्तर दुर्बल करने का प्रयत्न करते थे । यह एक ऐसा युद्ध था जिसका रणक्षेत्र मानव का मस्तिष्क था यह मनुष्य के मनों में लड़ा जाने वाला युद्ध था ।
इसे स्नायु युद्ध (War of nerves) भी कहा जा सकता है । इसमें रणक्षेत्र का सक्रिय युद्ध तो नहीं होता परन्तु विपक्षी राज्यों के सभी राजनीतिक आर्थिक सामाजिक सम्बन्धों में शत्रुता भरे तनाव की स्थिति रहती थी । शीत-युद्ध वस्तुत: युद्ध के नर-संहारक दुष्परिणामों से बचते हुए युद्ध द्वारा प्राप्त होने वाले समस्त उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक नूतन शस्त्र था ।
शीत-युद्ध एक प्रकार का बाबू-युद्ध था जिसे कागज के गोलों पत्र-पत्रिकाओं रेडियो तथा प्रचार साधनों से लड़ा गया । इसमें प्रचार द्वारा विरोधी गुट के देशों की जनता के विचारों को प्रभावित करके उनके मनोबल को क्षीण करने का प्रयत्न किया गया तथा अपनी श्रेष्ठता शक्ति और न्यायप्रियता का तार्किक दावा किया जाता था ।
वस्तुत: शीत-युद्ध एक प्रचारात्मक युद्ध था जिसमें एक महाशक्ति दूसरे के खिलाफ घृणित प्रचार का सहारा लेती थी । यह एक प्रकार का कूटनीतिक युद्ध भी था जिसमें शत्रु को अकेला करने और मित्रों की खोज करने की चतुराई का भी प्रयोग किया गया ।
Essay # 3. शीत-युद्ध : परिभाषा (Cold War: Definition):
डॉ. एम. एस. राजन के शब्दों में:
“शीत-युद्ध शक्ति-संघर्ष की राजनीति का वरन् 1917 में की नाकेबन्दी:
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