Hindi, asked by soapmactavish52, 1 year ago

भारत-पाक एकता में हिन्दी साहित्य और सिनेमां का योगदान
Please help me 750 words or any info will be of a lot of help.

Answers

Answered by wwwHarshSable
11

साहित्य और सिनेमा का पुराना एवं गहरा सम्बन्ध रहा है। साहित्य और सिनेमा ऐसे माध्यम हैं जिसमें समाज को बदलने की ताकत सबसे अधिक होती है। कोई भी साहित्य युगीन-जीवनमूल्यों से निरपेक्ष नहीं होता। साहित्य की जड़ें समाज में होती हैं। वह स्वयं एक सामाजिक उत्पादन है।

भारत में फिल्मों ने 100 वर्षों की यात्रा पूरी कर ली है। सिनेमा में हिंदी साहित्य पर आधारित अधिकांश फिल्मों का सफर बहुत आसान नहीं रहा। अधिकांश फिल्में असफल साबित हुर्इं। बांग्ला लेखक शरतचंद्र के उपन्यास ‘देवदास’ पर हिन्दी में चार फिल्में बनीं और कमोबेश सभी सफल भी रहीं। प्रेमचन्द की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर सत्यजीत रे ने इसी नाम से फिल्म बनाई, जो वैश्विक स्तर पर सराही गई। भगवतीचरण वर्मा के अमर उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर भी फिल्में बनीं, जिनमें एक सफल रही। भारतीय सिनेमा में हिंदी साहित्यकारों का सुनहरा दौर सातवें दशक में नजर आता है। हिंदी फिल्मों की इस नई धारा को समांतर सिनेमा भी कहा गया। इसी दौर में हिंदी साहित्य को सबसे ज्यादा महत्त्व और निष्ठाभरी समझ फिल्मकार मणि कौल ने दी। मणि कौल ने बाद में मोहन राकेश, विजयदान देथा, मुक्तिबोध और विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं पर फिल्में बनार्इं। फाइव पॉइंट समवन पर बेस्ड थ्री इडियट्स, थ्री मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ पर बेस्ड काय पो चे, वन नाइट ऐट कॉलसेंटर पर आधारित फिल्म हैलो और टू स्टेट्स पर आधारित फिल्म बन चुकी है। निर्देशक विशाल भारद्वाज की ज्यादा फिल्में उपन्यास पर आधारित रहीं हैं।

भारत का विभाजन(हिन्दू राष्ट्र-मुस्लिम राष्ट्र) इस देश के स्वर्णिम इतिहास का काला अध्याय साबित हुआ। अंतराल बीतने के बाद जब इसका आकलन किया जाता है तो पता चलता है कि हर बार आम जन ही अपना कुछ या सब कुछ खोता आया है।

1947 में देश का विभाजन हुआ, सामाजिक, राजनीतिक, और धार्मिक-मूल्य कांच के बर्तनों की तरह टूट गये और उनकी किरचें लोगों के पैरों में बिछी हुई थीं। भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख लोग मारे गये और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली। धार्मिक विद्वेष और अविश्वास की जिस पृष्ठभूमि में भारत का विभाजन हुआ, उससे न केवल यहाँ के भूगोल को प्रभावित किया बल्कि समस्त सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को भी। विभाजन का दर्द इतना गहरा था कि आज भी इसकी टीस हर किसी को महसूस होती है।

आजादी की सबसे बड़ी कीमत विभाजन के तौर पर चुकानी पड़ी। इस त्रासदी के लाखों लोग शिकार हुए और उन्हें बेघर होना पड़ा। कत्लेआम हुआ और कई जिंदगियां इसकी भेंट चढ़ गईं। आज भी जब आजादी का जश्न मनाया जाता है, तो यह त्रासदी जेहन में ताजा हो जाती है। हिंदी साहित्य में भी विभाजन का विषय हमेशा आता रहा है, और लेखकों ने अपने हिसाब से इस त्रासदी को लिखा है। भारत के विभाजन और उसके साथ हुए दंगे-फ़साद पर कई लेखकों ने उपन्यास और कहानियाँ लिखीं हैं, जिनमें से मुख्य हैं: झूठा सच(यशपाल), तमस(भीष्म साहनी), पिंजर(अमृता प्रीतम), पाकिस्तान मेल(खुशवंत सिंह), आधी रात की संतानें(सलमान रुशदी), सिक्का बदल गया(कृष्णा सोबती) इत्यादि। इनमें से कई साहित्यिक रचनाओं पर फिल्मकारों की दृष्टि भी गयी, एवं उन्होंने विभाजन की त्रासदी को ले कर कई फिल्मों का निर्माण किया।

विभाजन एवं साम्प्रदायिकता के प्रसंग में ‘तमस’ की याद स्वाभाविक है। जिन्दगी की छोटी-बड़ी लड़ियों की कहानी नहीं है। यह विभाजन जैसी ऐतिहासिक घटना का, संघर्ष का, वह महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जिसमें एक साथ लाखों लोग अपने-अपने ठिकानों से उखड़े थे। भीष्म खुद उस तूफ़ान की चपेट में थे जिसे बंटवारे का नाम दिया जाता है। बंटवारे के दरम्यान नफ़रत एक ऐसे पैमाने तक पहुँच गयी थी जहाँ न सिर्फ जमीन की बाँट थी- मानवीय संबंधों के टूटने, ख़त्म हो जाने की तिड़कन और टूटन भी थी। तमस की रचना कैसे हुई? भीष्म साहनी ने इस प्रश्न पर कहा है कि आजाद भारत में हुए दंगों के कारण उन्हें अपने शहर रावलपिंडी के दंगे याद आए जिनकी आग गांवों तक फैल गई थी। 1986-87 में दूरदर्शन पर आए फिल्मांकन के कारण यह उपन्यास एकाएक चर्चित हो उठा था लेकिन उसकी असली ताकत दंगों और घृणा के घनघोर अन्धकार में भी मनुष्यता के छोटे-छोटे सितारे खोजने में है। मजे की बात यह है कि इसकी कथा विभाजन से पहले की है लेकिन इसकी सफलता और सार्थकता इस बात में है कि यह विभाजन के मूल कारणों की पड़ताल करने में पाठक को विवेकवान बनाता है। भीष्म साहनी की किताब ‘तमस’ पर आधारित एक फिल्म से इतर यह एक टीवी सीरीज है। ओमपुरी की यह फिल्म पर्दे पर विभाजन के दौर में पलायन की कहानी कहती है। विभाजन की घोषणा और उससे पहले ही देश में दंगे शुरू हो गए थे। सड़कें या तो सूनी थीं या खून, आग और धुएं के बीच इंसानियत के खत्म होने की गवाही दे रही थीं।


soapmactavish52: How to?
Answered by PravinRatta
2

भारत और पाकिस्तान के बीच आजादी के बाद से ही तनाव का माहौल रहा है। आतंकवाद के मसले पर हर वक़्त ये दोनों देश आमने सामने होते हैं। बाकी देशों कि तुलना में भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहतर नहीं है।

लेकिन दो ऐसी चीजें हैं जिसके कारण पाकिस्तान और भारत का जुड़ाव हमेशा ही रहा है। यह ऐसी चीजें हैं जिसमें दोनों देश में सहयोग का भाव दिखा है।

ये दोनों चीजें हैं साहित्य और सिनेमा। इन दोनों क्षेत्र में अगर हम गौर करें तो यह प्रतीत होता है कि बहुत से ऐसे पाकिस्तानी है जो इन दोनों क्षेत्रों में काम करने कि वजह से भारत में रहते हैं।

कई ऐसे बड़े नाम हैं जो भारत के सिनेमा में काम करते हैं। कई लोग है जो साहित्य के क्षेत्र में बेहतर काम करते हैं जो भारत और पाकिस्तान के संबंध को कुछ हद तक सही रखता है।

Similar questions