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भारत के रक्षा निर्यात को $5 अरब तक ले जाने की ज़रूरत
4 April 2020
ANGAD SINGH
आज ज़रूरत है कि सरकार अपनी नीतियों में परिवर्तन लाए और सरकारी उपक्रमों के बजाय, रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रतिद्वंदिता करने का अवसर उपलब्ध कराए. रक्षा क्षेत्र में नया-नया क़दम रखने वाला निजी क्षेत्र पहले ही अपनी क्षमता से अधिक निर्यात करने में सफलता प्राप्त कर रहा है.
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अगर हम स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI), के वार्षिक आंकड़ों को देखें, तो साल दर साल इसके ज़रिए यही पता चलता है कि भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़े आयातक देशों में लगातार उच्च स्तर पर बना हुआ है. इन आंकड़ों से भारत के अपने सैन्य औद्योगिक क्षेत्र की बुरी स्थिति का भी अंदाज़ा होता है. ये तस्वीर अगर आपको निराशाजनक लगती रही है. तो, 2020 के SIPRI के आंकड़ें आपके चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं. अगर हथियारों के आयात की बात करें, तो विश्व में भारत का स्थान सऊदी अरब के पश्चात दूसरा ही है. परंतु, पिछले वर्ष की तुलना में इस बार भारत रक्षा निर्यात के मामले में दुनिया के शीर्ष 25 देशों में पहुंच गया है. 1990 के दशक में जहां भारत हथियारों का पता लगाने वाले रडार को अमेरिका और इज़राइल से पाने के लिए संघर्ष कर रहा था. वहीं, इस साल उसने यही रडार आर्मेनिया को बेचने में सफलता प्राप्त की है. ये समझौता 4 करोड़ डॉलर का था. भारत के रक्षा मंत्रालय के अपने आंकड़े बताते हैं कि भारत ने वित्तीय वर्ष 2018 और वित्तीय वर्ष 2019 के दौरान अपना रक्षा उपकरण निर्यात 4 हज़ार 682 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 हज़ार, 745 करोड़ के स्तर तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की है. इस साल फरवरी में हुए डिफेंस ट्रेड शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत को अगले पांच वर्षों में अपने रक्षा निर्यात को 35 हज़ार करोड़ रुपए सालाना के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य पाने का प्रयास करना चाहिए.