Hindi, asked by malviyanirmal13, 7 months ago

भारतेंदु हरिश्चंद्र की नाट्य कला की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए​

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Answered by roshanipandeyanirudh
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h76yhtt6 says he didn't t

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66inches are going through a great year of their life

Answered by sswapnilsoni
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भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी के प्रथम मौलिक नाटककार हैं । उन्होंने ना केवल नाटक को युगीन समस्याओं से जोड़ा बल्कि नाटक और रंगमंच के परस्पर संबंध को समझाते हुए रंगकर्म भी किया। भारतेंदु ने हिंदी नाट्य विकास के लिए योजनाबद्ध ढंग से एक संपूर्ण आंदोलन की तरह काम किया है।

प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र

भारतेंदु ने पारसी नाटकों के विपरीत जनसामान्य को जागृत करने एवं उनमें आत्मविश्वास जगाने के उद्देश्य से नाटक लिखे हैं । इसलिए उनके नाटकों में देशप्रेम , न्याय , त्याग , उदारता जैसे मानवीय मूल्यों नाटकों की मूल संवेदना बनकर आए हैं प्राचीन संस्कृति के प्रति प्रेम एवं ऐतिहासिक पात्रों से प्रेरणा लेने का प्रयास भी इन नाटकों में हुआ है।

भारतेंदु के लेखन की एक मुख्य विशेषता यह है कि वह अक्सर व्यंग्य का प्रयोग यथार्थ को तीखा बनाने में करते हैं । हालांकि उसका एक कारण यह भी है कि तत्कालीन पराधीनता के परिवेश में अपनी बात को सीधे तौर पर कह पाना संभव नहीं था । इसलिए जहां भी राजनीतिक , सामाजिक चेतना , के बिंदु आए हैं वहां भाषा व्यंग्यात्मक हो चली है ।

इसलिए भारतेंदु ने कई प्रहसन भी लिखे हैं।

भारतेंदु ने मौलिक व अनुदित दोनों मिलाकर 17 नाटकों का सृजन किया भारतेंदु के प्रमुख नाटक का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

‘ वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ‘ मांस भक्षण पर व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया नाटक है ।

‘ प्रेमयोगिनी ‘ में काशी के धर्मआडंबर का वही की बोली और परिवेश में व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है।‘ विषस्य विषमौषधम् ‘ मैं अंग्रेजों की शोषण नीति और भारतीयों की महाशक्ति मानसिकता पर चुटीला व्यंग है।

‘ चंद्रावली ‘ वैष्णव भक्ति पर लिखा गया नाटक है ।

‘ अंधेर नगरी ‘ में राज व्यवस्था की स्वार्थपरखता, भ्रष्टाचार , विवेकहीनता एवं मनुष्य की लोभवृति पर तीखा कटाक्ष है जो आज भी प्रासंगिक है।

‘ नीलदेवी ‘ में नारी व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा है । यह दुखांत नाटक की परंपरा के नजदीक है ।

‘ भारत दुर्दशा ‘ में पराधीन भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति एवं सामाजिक – सांस्कृतिक अधः पतन का चित्रण है ।

‘सती प्रताप’ सावित्री के पौराणिक आख्यान पर लिखा गया है।

भारतेंदु ने अंग्रेजी के ‘ मर्चेंट ऑफ वेनिस ‘ नाटक का ‘ दुर्लभबंधु ‘ नाम से अधूरा अनुवाद भी किया है।

भारतेंदु के नाटक सोद्देश्य लिखे गए हैं । उनकी भाषा आम आदमी की भाषा है । लोकजीवन के प्रचलित शब्द मुहावरे एवं अंग्रेजी , उर्दू , अरबी , फारसी के सहज चलन में आने वाले शब्द उनके नाटकों में प्रयुक्त हुए हैं ।

रंगमंचीय दृष्टि से वह प्रायः भारतीय परंपरा की नीतियों का अनुसरण करते हैं

जैसे – नांदीपाठ , मंगलाचरण आदि ।

वैसे उन्होंने ‘ नीलदेवी ‘ नामक दुखांत नाटक लिखकर पाश्चात्य नाट्य परंपरा से भी प्रभाव ग्रहण किया है ।

‘ भारत दुर्दशा ‘ में भी दुखांत का प्रभाव विद्यमान है ।

भारतेंदु को हिंदी के प्रथम नाटककार एवं युग प्रवर्तक के रूप में स्वीकार किया गया है ।

हिंदी नाट्य साहित्य को उनकी देन निम्नलिखित है-

1 उन्होंने पहली बार हिंदी में अनेक विषयों पर मौलिक नाटकों की रचना की तथा कथानक के क्षेत्र में विविधता लाए ।

2 पहली बार हास्य व्यंग्य प्रधान प्रहसन लिखने की परंपरा का सूत्रपात किया।

3 पहली बार भारतीय जीवन के यथार्थ के विविध नवीन पक्षों का उद्घाटन किया।

4 पहली बार हिंदी के मौलिक रंगमंच की स्थापना का प्रयास किया ।

5 अनेक भाषाओं से नाटकों के सुंदर अनुवाद किए ।

6 संस्कृत , बांग्ला , अंग्रेजी नाटक कला का समन्वय कर हिंदी की स्वतंत्र नाट्यकला की नींव डाली।

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