भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा था- "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।" अपनी भाषा को जाने और
उसका विकास किए बिना हम अन्य किसी भी प्रकार की उन्नति की कल्पना नहीं कर सकते) भाषा हमें
एक-दूसरे से जोड़ती है (प्राय: घर से दूर अथवा विदेश में जब हम किसी के मुख से अपनी भाषा सुनते हैं, तो
एक हल्की-सी स्मित स्वयमेव हमारे मुँह पर आ जाती है। हम भी अपनी भाषा को बोलकर उस अपरिचित से
अपना नाता बनाने लगते हैं। शायद इसीलिए भाषा को हम 'मातृभाषा' की संज्ञा देते हैं, क्योंकि कुछ परिस्थितियों
में वह हमारे स्नेह-बंधनों की सूत्रधार बन जाती है। इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि आज हमारी राष्ट्रभाषा
'राजमाता' होने का हौसला तो रखती है, लेकिन अपने ही देश में धिक्कारी जाती है। भले ही गलत बोलें, परंतु
आग्ल-भाषा का प्रयोग हम साधिकार करते हैं और हिंदी बोलते हुए हमारी सकुचाहट देखते ही बनती है। विदेशों
में बढ़ता हिंदी का चलन भले ही गर्व से हमारा सिर ऊपर करे, परंतु अपने ही देश में उसका प्रयोग करते हुए
न जाने क्यों हमारी गर्दन शर्म से झुक-सी जाती है।
》 इस गद्यान्श के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
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bhot alochniye bat ha usko ache se solve kare
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