भारत वासियों को अमेरिका में क्यों घुसने नहीं दिया जाता???
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Explanation:
प्रिय युवा भारतवासियों,
आप लोग इस देश के भविष्य हैं इसलिए मैं यह महसूस करता हूँ कि आप लोगों से सीधे वार्तालाप करना जरूरी है.
शिकारा फ़िल्म से सम्बंधित कुछ हालिया घटनाओं ने मुझे अत्यंत व्यथित किया है. मैं एक कश्मीरी हिन्दू हूँ. कश्मीर की घटनाओं से प्रभावित रहा हूँ. कश्मीर में मेरा घर है जिसमें तोड़ फोड़ की गई. मेरे परिवार पर हमला किया गया. मेरी माँ परिन्दा फिल्म के प्रीमियर के लिए एक छोटे से सूटकेस के साथ मुम्बई आई थीं लेकिन फिर कभी वापस कश्मीर नहीं जा सकीं. मुम्बई में निर्वासन की अवस्था में ही उनका निधन हुआ.
आप में से अधिकतर लोग मुझे 'मुन्नाभाई' और '3 इडियट' के निर्माता के रूप में जानते हैं. वस्तुतः मैं पिछले चालीस सालों से फिल्में बना रहा हूँ. मेरी पहली शार्ट फ़िल्म 1979 में आस्कर के लिए नामांकित की गई थी. सिनेमा की मेरी यात्रा पर्याप्त संतुष्टिदायक रही है. मेरे मन में कभी भी रंचमात्र यह सन्देह नहीं रहा कि मैं प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता इगमार के उस विचार से दूर हुआ हूँ जिसमें उन्होंने कहा था कि तू लोगों का मनोरंजन करेगा लेकिन कभी भी अपनी आत्मा बेचकर मनोरंजन नहीं करेगा.
अब मुझ पर अपनी आत्मा को बेचने का आरोप लगाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि मैंने कश्मीरी पंडितों के मुद्दे का व्यवसायीकरण किया है. यह एक निरर्थक आरोप है क्योंकि यदि मैं पैसा ही कमाना चाहता तो 'मुन्नाभाई' और '3 इडियट' का सीक्वेल बनाता. लेकिन मैंने 'शिकारा' इसलिए बनाई क्योकि आप में से अधिकांश हमारी त्रासदी से अनजान हैं जबकि मैं उस त्रासदी का प्रत्यक्ष दर्शी था. मैं जानता हूँ कि अपने घर को खोने का मतलब क्या होता है. 1990 में जब हमलोग अपने घर कश्मीर से खदेड़े गए थे तब आपमें से कइयों का तो जन्म ही नहीं हुआ होगा. यदि आपको इतिहास का ज्ञान नहीं है तो उसको दोहराए जाने की आशंका प्रबल हो जाती है और उसका आरोप भी आप पर ही लगेगा.
शिकारा मेरा सच है, मेरी माँ का सच है, मेरे सह लेखक राहुल पण्डिता का भी सच है.
यह उस समुदाय की सच्चाई है जो इतने बड़े आघात के बाद भी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाता ,बंदूक नहीं उठाता, घृणा नहीं फैलाता. शिकारा हिंसा और वैमनस्यता के बीज बोय बिना ही अकल्पनीय पीड़ा को बयां करने का प्रयास है.
शिकारा एक ऐसे संवाद को शुरू करने का प्रयास भर है जिससे यह उम्मीद बनती है कि कश्मीरी पंडित वापस कश्मीर लौटने में सक्षम बनेंगे.
हिंसा से हिंसा ही बढ़ेगी, मैंने अपने घर को नफरत द्वारा नष्ट होते देखा है. आप लोग इस नफरत के ग्रास न बनें यही कामना करता हूँ. मैं चाहता हूँ कि आप एक ऐसा भविष्य बनाएं जो मेरे अतीत से भिन्न हो.
विधु विनोद चौपड़ा
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