भारत विश्व भर में शिल्प कला में अग्रणी देश है इस विषय पर 8 से 10 वाक्यों में विचार लिखिए.
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प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत के कालक्रम में शिल्पकार को बहुआयामी भूमिका का निर्वाह करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। शिल्पकार शिल्पवस्तुओं के निर्माता और विक्रेता के अलावा समाज में डिजाइनर, सर्जक, अन्वेषक और समस्याएं हल करने वाले व्यक्ति के रूप में भी कई भूमिकाएं निभाता है। अतः शिल्पकार केवल एक वस्तु निर्माता ही नहीं होता और शिल्पवस्तु (क्राफ्ट) केवल एक सुंदर वस्तु ही नहीं होती बल्कि इसका सृजन एक विशेष कार्य के लिए, ग्राहक की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए किया जाता है।
वस्तुतः शिल्पकार एक समस्या समाधानकर्ता के रूप में कुशल भूमिका निभाता है (विशेषतः ग्रामीण भारत में )। उदाहरण के लिए, उपभोक्ता या ग्राहक शिल्पकार से कह सकते हैं कि वह एक ऐसा प्याला बनाये, जिसे वे आसानी से पकड़ सकें और उससे गर्म पेय पी सकें। इस संबंध में शिल्पकार कुम्हार कप के हैंडल को इस तरह से डिजाइन करेगा कि उसे आसानी से पकड़ा जा सके और कप को इस प्रकार का आकार देगा कि न तो वह बहुत भारी हो और न ही बहुत बड़ा। इस तरह स्पष्ट है कि ग्राहक शिल्पकार को एक समस्या को हल करने के लिए देता है कि वह गर्म पेय के लिए कप बनाये। शिल्पकार जिस जीवंतता (vividity) के साथ कार्य करता है, वह उसे एक सांस्कृतिक प्राणी और सौन्दर्योपासक (वस्तु की सुंदरता की उपासना एवं आराधना करने वाला) बना देती है। विभिन्न वस्तु एवं उत्पाद का निर्माण उसके लिए एक साधना हो जाती है। अपनी इसी साधना को इन्द्रधनुषी आभा प्रदान करने में वह लगा रहता है। गहराई से देखें तो शिल्पकार द्वारा निर्मित उत्पाद उपयोगिता, सौन्दर्य, अंतसंपर्कों को बढ़ावा देने का उपादान (Tool) होता है। शिल्पकार कुम्हार की विशिष्टता उत्पाद की कलाकारी और सजावट नहीं बल्कि ग्राहक की समस्याओं हेतु उपयुक्त एवं कल्पनाशील हल ढूँढने में शिल्पकार का कौशल है। ऐसे में ग्राहक की जिम्मेदारी भी बनती है कि वह शिल्पकार को प्रोत्साहित करे जिससे वह हर समय नयी और उत्साहजनक वस्तु का सृजन एवं उत्पादन करे। इस दृष्टि से ग्राहक और शिल्पकार के मध्य संबंध और उपयोगी अंतसंपर्क ही शिल्पकला के सर्वोत्तम विकास में सहायक है।
Explanation:
भारत के शिल्प और शिल्पकार यहां की लोक एवं शास्त्रीय परंपरा का अभिन्न अंग हैं। यह ऐतिहासिक समांगीकरण (Historical Assimilations) कई हजार वर्षों से विद्यमान है। कृषि अर्थव्यवस्था में आम लोगों और शहरी लोगों, दोनों के लिए प्रतिदिन उपयोग के लिए हाथों से बनाई गई वस्तुएं शिल्प की दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाती हैं। हालांकि शिल्पकार लोगों को जाति प्रथा के ढांचे में बांटा गया, लेकिन उनके कौशल को सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं द्वारा प्रोत्साहित किया गया एवं स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा इसे गति प्रदान की गई।
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