भारत वंदना कविता में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का क्या कथन है
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पूरा नाम सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
अन्य नाम निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896 [1]
जन्म भूमि मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
अभिभावक पं. रामसहाय
पति/पत्नी मनोहरा देवी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्यकार
मुख्य रचनाएँ परिमल, गीतिका, तुलसीदास (खण्डकाव्य) आदि
विषय कविता, खंडकाव्य, निबंध, समीक्षा
भाषा हिन्दी, बंगला, अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषा
प्रसिद्धि कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ
मार दी तुझे पिचकारी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
शरण में जन, जननि -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
टूटें सकल बन्ध -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
ध्वनि -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
अट नहीं रही है -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
गीत गाने दो मुझे -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रियतम -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कुत्ता भौंकने लगा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
गर्म पकौड़ी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
तुम और मैं -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
पथ आंगन पर रखकर आई -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
खेलूँगी कभी न होली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मातृ वंदना -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
आज प्रथम गाई पिक पंचम -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
उत्साह -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
चुम्बन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मौन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रपात के प्रति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्रिय यामिनी जागी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वन बेला -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भिक्षुक -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
तोड़ती पत्थर -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
प्राप्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मुक्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वे किसान की नयी बहू की आँखें -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वर दे वीणावादिनी वर दे ! -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मरा हूँ हज़ार मरण -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भारती वन्दना -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
रँग गई पग-पग धन्य धरा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भर देते हो -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
दलित जन पर करो करुणा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
उक्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि... -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
ख़ून की होली जो खेली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
आज प्रथम गाई पिक -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
स्नेह-निर्झर बह गया है -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
पत्रोत्कंठित जीवन का विष -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
केशर की कलि की पिचकारी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
भेद कुल खुल जाए -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
राजे ने अपनी रखवाली की -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
गहन है यह अंधकार -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
मद भरे ये नलिन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
संध्या सुन्दरी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
तुम हमारे हो -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला (अंग्रेज़ी: Suryakant Tripathi 'Nirala', जन्म- माघ शुक्ल 11 सम्वत् 1953 अथवा 21 फ़रवरी, 1896 ई., मेदनीपुर बंगाल; मृत्यु- 15 अक्टूबर, 1961, प्रयाग) हिन्दी के छायावादी कवियों में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। निराला जी एक कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे। उन्होंने कई रेखाचित्र भी बनाये। उनका व्यक्तित्व अतिशय विद्रोही और क्रान्तिकारी तत्त्वों से निर्मित हुआ है। उसके कारण वे एक ओर जहाँ अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तनों के स्रष्टा हुए, वहाँ दूसरी ओर परम्पराभ्यासी हिन्दी काव्य प्रेमियों द्वारा अरसे तक सबसे अधिक ग़लत भी समझे गये। उनके विविध प्रयोगों- छन्द, भाषा, शैली, भावसम्बन्धी नव्यतर दृष्टियों ने नवीन काव्य को दिशा देने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसलिए घिसी-पिटी परम्पराओं को छोड़कर नवीन शैली के विधायक कवि का पुरातनतापोषक पीढ़ी द्वारा स्वागत का न होना स्वाभाविक था। लेकिन प्रतिभा का प्रकाश उपेक्षा और अज्ञान के कुहासे से बहुत देर तक आच्छन्न नहीं रह सकता।