"भारत वर्ष सभी अनरथी की जड़ है - जनसाधारण की गरीबी । " स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
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He play a vital role for.our country
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उत्तर:स्वामी विवेकानंद जी का कहना है क्या ये भारत वर्ष जब भी मैंने भारत देश का भ्रमण यहाँ की घोर गरीबी मुझ से देखी नहीं जाती मुझे दुख होता हैं
स्वामी विवेकानंद ने गरीब दूर करने, कृषि और औद्योगिक विकास और श्रमिकों की स्थिति के बारे में अपनी राय खुलकर बताई. स्वामी जी भारत की गरीबी का मुख्य जिम्मेदार यूरोपीय देशों को मानते थे, जो भारत की संपत्ति को लूटकर ले गए और जिन्होंने भारत के उद्योग धंघों को तबाह किया.स्वामीजी भारत की एक लंबी यात्रा पर निकल पड़े. पूरे भारत में अपनी यात्रा के दौरान, स्वामी विवेकानंद भारत की गरीबी और जनता के पिछड़ेपन को देखकर अत्यंत द्रवित हुए.
व्याख्या;विवेकानंद ‘मनुष्यों के निर्माण में विश्वास‘ रखते थे। इससे उनका आशय था शिक्षा के जरिए विद्यार्थियों में सनातन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा करना। ये मूल्य एक मजबूत चरित्र वाले नागरिक और एक अच्छे मनुष्य की नींव बनते। ऐसा व्यक्ति अपनी और अपने देश की मुक्ति के लिए संघर्ष करता। विवेकानंद की मान्यता थी कि शिक्षा, आत्मनिर्भरता और वैश्विक बंधुत्व को बढ़ावा देने का जरिया होनी चाहिए।
निष्कर्ष:गरीब और गरीबी को लेकर किस तरह का रवैया अपनाया जाना चाहिए, यह बताते हुए विवेकानंद कहते हैं, 'हर व्यक्ति को भगवान की तरह देखो। आप किसी की मदद नहीं कर सकते, बस उसकी सेवा कर सकते हैं। अगर आपके पास अधिकार हैं तो यह समझें कि भगवान के बच्चों की सेवा खुद उसकी ही सेवा है। गरीबों की सेवा का काम पूजा भाव से करो।
स्वामी विवेकानंद ने गरीब दूर करने, कृषि और औद्योगिक विकास और श्रमिकों की स्थिति के बारे में अपनी राय खुलकर बताई. स्वामी जी भारत की गरीबी का मुख्य जिम्मेदार यूरोपीय देशों को मानते थे, जो भारत की संपत्ति को लूटकर ले गए और जिन्होंने भारत के उद्योग धंघों को तबाह किया.स्वामीजी भारत की एक लंबी यात्रा पर निकल पड़े. पूरे भारत में अपनी यात्रा के दौरान, स्वामी विवेकानंद भारत की गरीबी और जनता के पिछड़ेपन को देखकर अत्यंत द्रवित हुए.
व्याख्या;विवेकानंद ‘मनुष्यों के निर्माण में विश्वास‘ रखते थे। इससे उनका आशय था शिक्षा के जरिए विद्यार्थियों में सनातन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा करना। ये मूल्य एक मजबूत चरित्र वाले नागरिक और एक अच्छे मनुष्य की नींव बनते। ऐसा व्यक्ति अपनी और अपने देश की मुक्ति के लिए संघर्ष करता। विवेकानंद की मान्यता थी कि शिक्षा, आत्मनिर्भरता और वैश्विक बंधुत्व को बढ़ावा देने का जरिया होनी चाहिए।
निष्कर्ष:गरीब और गरीबी को लेकर किस तरह का रवैया अपनाया जाना चाहिए, यह बताते हुए विवेकानंद कहते हैं, 'हर व्यक्ति को भगवान की तरह देखो। आप किसी की मदद नहीं कर सकते, बस उसकी सेवा कर सकते हैं। अगर आपके पास अधिकार हैं तो यह समझें कि भगवान के बच्चों की सेवा खुद उसकी ही सेवा है। गरीबों की सेवा का काम पूजा भाव से करो।
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