Social Sciences, asked by sy1847167, 2 months ago

भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर-उद्योगों का क्या महत्त्व था?
नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धांतों के साथ कैसी समझौता थी?​

Answers

Answered by induashok31gmailcom
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Answered by kumarsubodh58149
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Answer:

वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा नई आर्थिक नीति आरम्भ करने के पीछे मुख्य उद्देश्य थे, वे निम्नलिखित हैं-

(१) भारतीय अर्थव्यवस्था को 'वैश्वीकरण' के मैदान में उतारने के साथ-साथ इसे बाजार के रूख के अनुरूप बनाना।

(२) मुद्रास्फीति की दर को नीचे लाना और भुगतान असंतुलन को दूर करना।

(३) आर्थिक विकास दर को बढ़ाना और विदेशी मुद्रा के पर्याप्त भंडार का निर्माण करना ।

(४) आर्थिक स्थिरीकरण को प्राप्त करने के साथ-साथ सभी प्रकार के अनावश्यक आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना। अर्थव्यवस्था के लिए बाजार अनुरूप एक आर्थिक परिवर्तिन लाना।

(५) प्रतिबंधों को हटाकर, माल, सेवाओं, पूंजी, मानव संसाधन और प्रौद्योगिकी के अन्तरराष्ट्रीय प्रवाह की अनुमति प्रदान करना।

(६) अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाना। इसी कारण सरकार के लिए आरक्षित क्षेत्रों की संख्या घटाकर 3 कर दिया गया।

Explanation:

१९९० के दशक में भारत सरकार ने आर्थिक संकट से बाहर आने के क्रम में अपने पिछले आर्थिक नीतियों से विचलित और निजीकरण की दिशा में सीखने का फैसला किया और अपनी नई आर्थिक नीतियों को एक के बाद एक घोषित करना शुरू कर दिया। आगे चलकर इन नीतियों के अच्छे परिणाम देखने को मिले और भारत के आर्थिक इतिहास में ये नीतियाँ मील के पत्थर सिद्ध हुईं। उस समय पी वी नरसिंह राव भारत के प्रधानमंत्री थे और मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे।

इससे पहले देश एक गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था और इसी संकट ने भारत के नीति निर्माताओं को नयी आर्थिक नीति को लागू के लिए मजबूर कर दिया था । संकट से उत्पन्न हुई स्थिति ने सरकार को मूल्य स्थिरीकरण और संरचनात्मक सुधार लाने के उद्देश्य से नीतियों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। स्थिरीकरण की नीतियों का उद्देश्य कमजोरियों को ठीक करना था, जिससे राजकोषीय घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन को ठीक किया सके।

नई आर्थिक नीति के ३ प्रमुख घटक या तत्व थे- उदारीकरण, निजीकरण , वैश्वीकरण ।

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