भारतीय ब्रह्म समाज के संस्थापक थे
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इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। ब्राह्म समाज भारत का एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन था जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 1828 में ब्रह्म समाज को [[राजा राममोहन राय| ने स्थापित किया था।
Explanation:
केशवचंद्र सेन 1856 में ब्रह्म समाज के सदस्य बने। उन्होंने अपने भाषणों तथा लेखों द्वारा अनेक नवयुवकों को ब्रह्म समाज के प्रति आकर्षित किया। समाज के विचारों को प्रचारित करने के लिए उन्होंने संत सभा की स्थापना की। केशवचंद्र सेन पाश्चात्य विचारों से अधिक प्रभावित थे तथा ईसाई धर्म का उन पर गहरा प्रभाव रहा।वे ब्रह्म समाज को ईसाई धर्म के सिद्धांतों के अनुसार चलाना चाहते थे। फलस्वरूप देवेन्द्रनाथ टैगोर से उनका मतभेद हो गया और उन्होंने 1866 में भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना की। देवेन्द्र नाथ के प्रभावशाली व्यक्तित्व से मुक्त होने के बाद केशवचंद्र सेन के नेतृत्व में ब्रह्म समाज ईसाई धर्म की ओर झुकने लगा। फलस्वरूप ईसा मसीह ब्रह्म समाजियों के पूज्य पथ-प्रदर्शक बन गये। बाइबिल तथा ईसाई पुराणों का अध्ययन उत्साह से होने लगा। इसके साथ ही अपने समाज को विश्व धर्म का व्याख्याता बताने के लिए उन्होंने सभी धर्मों की उपासना प्रारंभ की। अपने समाज के प्रार्थना संग्रह में हिन्दू, बौद्ध,यहूदी, ईसाई , मुस्लिम और चीनी आदि सभी धर्मों की प्रार्थनाएँ शामिल थी। साथ ही उन्होंने वैष्णव कीर्तन के गीत भी अपनी प्रार्थना में शामिल किये।
केशवचंद्र सेन ने नवयुवकों में सामाजिक सुधार की उग्र भावना जागृत की। उन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह का प्रबल समर्थन किया तथा बाल विवाह,बहु विवाह और पर्दा-प्रथा का विरोध किया। उन्होंने अंतर्जातीय विवाह का भी समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप 1872 में ब्रह्म मेरिजेज एक्ट पास किया गया, जिसके अनुसार अंतर्जातीय विवाह व विधवा विवाह हो सकते थे तथा बाल विवाह व बहु विवाह का निषेध कर दिया गया। 1870 में इंग्लैण्ड से वापस लौटकर केशवचंद्र सेन ने इंडियन रिफार्म एसोसियशन की स्थापनी की। जिसमें स्त्रियों की स्थिति सुधार, मजदूर वर्ग की शिक्षा, सस्ते साहित्य का निर्माण,नशाबंदी आदि उद्देश्य रखे गये। अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक साप्ताहिक समाचार-पत्र , सुलभ समाचार को आरंभ किया। स्त्रियों को उनके घर पर शिक्षा देने के लिए एक समुदाय बनाया और अन्य समुदाय सस्ती व उपयोगी पुस्तकों के प्रकाशन के लिए प्रकाशित किया।
केशवचंद्र सेन के नेतृत्व में ब्रह्म समाज का तीव्र गति से उत्कर्ष हुआ। नवयुवकों ने बंगाल के गाँव-2 में जाकर समाज का प्रचार किया तथा अनेक नवयुवक बंगाल से बाहर भी गये। 1866 में एक लेख से पता चलता है कि बंगाल में 50,उत्तर प्रदेश में 2,पंजाब तथा मद्रास में एक-एक शाखा स्थापित हो चुकी थी। 1878 में कूचबिहार के राजकुमार और केशवचंद्र सेन की पुत्री का विवाह हो गया। केशवचंद्र सेन की पुत्री व कूचबिहार का राजकुमार दोनों नाबालिग थे। इससे केशवचंद्र सेन की प्रतिष्ठा पर गहरा आघात लगा।, क्योंकि ब्रह्म मेरिजेज एक्ट पास करवाने में केशवचंद्र सेन सबसे अधिक सक्रिय थे। और अब उन्होंने स्वयं उस कानून का उल्लंघन कर दिया। अतः केशवचंद्र सेन के नेतृत्व के विरुद्ध आवाज उठी और भारतीय ब्रह्म समाज के दो टुकङे हो गये। केशवचंद्र सेन के विरोधियों ने साधारण ब्रह्म समाज स्थापित कर दिया। केशवचंद्र सेन के साथ जो सभी रही उसका नाम नव विधान सभा रखा गया।